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"नमक / संज्ञा सिंह" के अवतरणों में अंतर

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03:10, 18 दिसम्बर 2009 का अवतरण

बादलों
धैर्य मत खोना
अभी मेरे होंठों में
नमी बरकरार है

उमड़ते-घुमड़ते
गरज़ते और दौड़ते रहना
आँखों में झलक रहा है
पानी अभी

खाया हुआ नमक
घुल रहा है रग-रग में
संचरित हो रहा है ख़ून

आँखें
पठारी शक्ल अख़्तियार कर लें
सूख जाएँ होंठ
तब बरस जाना
कि ज़िन्दगी भर घुलता रहे
मेरी ही रगों में
खाया हुआ नमक