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ताज / सुमित्रानंदन पंत

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भूल गये हम जीवन का संदेश अनश्वर,
मृतकों के हैं मृतक, जीवतों का है ईश्वर!
 
'''रचनाकाल: अक्टूबर’१९३५'''
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