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"पोस्टमैन / गीत चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर

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(कोई अंतर नहीं)

16:53, 25 दिसम्बर 2009 का अवतरण

निर्वासन के दिनों में एक छोटे द्वीप पर नेरूदा के साथी के लिए


अपने कमरे में लेटा पोस्टमैन है

जो नेरूदा को पहुँचाता था डाक

हालाँकि उन्हें गए अरसा बीत गया

जैसे आवाज़ करती है सुने जाने का इंतज़ार

और भटकती है हवा में अनंतकाल तक

जैसे दृश्य से जुड़ा होता है दृष्टि का इंतज़ार

घर से निकली बेटी का माँ करती है जैसे

वैसी ही बेचैनी

जिसे वह सर्द रात में ओढ़ लेता है

और तपते दिन में झल लेता है


क्या सोचा होगा महाकवि ने

जब पोस्टमैन ने की होगी जि़द

कि लिख दें वह उसकी प्रेमिका के लिए एक कविता

जिसे वह कहेगा अपनी

कि आपके पास इतनी महिलाओं की चिट्ठी आती है

कि मेरा भी मन करता है कवि बन जाऊँ


नेरूदा के भीतर जागा होगा पिता

साँसों से दुलारा होगा उसे

और उंगली थमा ले गए होंगे समंदर तक

उसे बताया होगा कि सपनों को सपनों की तरह ख़ारिज मत करो

जंगल से मिलो तो हरी पत्ती बनकर

पानी से बन चीनी का दाना

लकड़ी से काग़ज़ और मनुष्य से संगीत बनकर


और जीवन में प्रवेश कर गए होंगे

उसके जीवन में एक सूना डाकख़ाना छोड़


वह कर रहा है इंतज़ार जीवन के पार

हरियाली मिठास शब्द और सुर की अर्घ्य देता


वह क्या है जो इस कमरे में नहीं है

जिसके लिए ख़ाली है जगह

इस किताब में नहीं जो छोड़ दिया एक पन्ना सादा

इस कैसेट में जिसके एक ही तरफ़ आवाज़ है

इस शरीर में जिसके मध्य खाई-सी बन गई है

इस शख़्स में जो थकान के बाद भी भटकता है बिस्तर पर

भीतर कहीं टपकता है जल या आँख का नल


जिसके पास रोज़ गट्ठरों में पहुँचती हो चिट्ठी

वह क्यों नहीं देता उसकी चिट्ठी का जवाब

वह जागेगा तब तक सो चुकी होगी दुनिया

फिर वह अपनी अनिद्रा में कसमसाएगा


चाय हमेशा तभी क्यों उबलती है

जब आप किचन में नहीं होते

पंक्तियाँ तभी क्यों आती हैं

जब आपके पास क़लम नहीं होता

लोग तभी क्यों लौटकर आते हैं

जब आपका बदन नहीं होता


पोस्टमैन

तुम्हें नसीब हुआ निर्वासन के सबसे गुप्त द्वीप पर

दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत उंगलियों का साथ

तुमने सहेजकर रखी उस चिडि़या की आवाज़

रिकॉर्डर में डाला लहरों का कलरव

उस धुन को जो कँपाती थी नेरूदा के होंठ

और सबसे अंत में जो तुम्हारी आवाज़ थी

उसमें तुम्हारी उम्मीद को सुना जाना चाहिए


महाकवि जब मरे

तो उनके दिल में एक खाई बन गई थी

लोगों ने कहा

यह उनके देश में लोकतंत्र की मृत्यु के कारण बनी

उनकी सबसे प्यारी चिडि़या के पंख नुँच जाने के कारण

दरअसल

एक अन्याय से हुआ था वहाँ विस्फोट

और उतना टुकड़ा प्रायश्चित कर रहा है

पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए


पोस्टमैन= जब नेरूदा को चीले से निष्कासित किया गया था और वह भूमध्य सागर के एक द्वीप में रह रहे थे, तब यह पोस्टमैन उनके साथ था। नेरूदा के नाम क्विंटल-क्विंटल डाक आती थी। डाकख़ाना परेशान था। उसने ख़ासकर नेरूदा के लिए इस पोस्टमैन को नियुक्त किया। नेरूदा से अच्छी घनिष्ठता हो जाने के बाद वह भी कविताएँ लिखने लगा। एक दिन नेरूदा उस द्वीप से चले गए। पोस्टमैन उन्हें ख़त लिखता रहा, पर कभी जवाब न आया। काफ़ी समय बाद उसे चिट्ठी मिली जो कि नेरूदा के सचिव ने लिखी थी। महाकवि उस द्वीप पर अपने घर में कुछ चीज़ें भूल आए थे और चाहते थे कि उनका दोस्त पोस्टमैन उन्हें वे चीज़ें भेज दे। पोस्टमैन उनके घर गया। उसे वहाँ एक टेपरिकॉर्डर भी मिला। उसमें उसने वे तमाम आवाजें दर्ज़ कीं, जो नेरूदा को पसंद थीं। चीज़ें भेजने से पहले ही पोस्टमैन ने नेरूदा के बारे में एक कविता लिखी। स्थानीय स्तर पर वह कविता काफ़ी पसंद की गई। उसे माद्रिद से बुलावा आया, उस कविता को पढ़ने के लिए। सभा में वह मंच पर पहुँचकर कविता पढ़ता, इससे पहले भगदड़ मच गई और वह मारा गया। उसकी मौत के कुछ दिन बाद ही नेरूदा उस द्वीप पर लौटे, जहाँ उनके लिए सिर्फ़ दुख और पछतावा बचे थे।