भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"भाषा / महेश सन्तुष्ट" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश सन्तुष्ट }} {{KKCatKavita}} <poem> मैंने भोंकने वाले जान…)
(कोई अंतर नहीं)

21:51, 25 दिसम्बर 2009 का अवतरण

मैंने
भोंकने वाले
जानवरों की भाषा में
एक ही लय देखी है।

और देखा है
चिन्तकों को
मूक भाषा में
बातें करते।


मैंने
घरों में
केवल आदमी को ही नहीं
भाषा को भी
निर्वस्त्र होते देखा है!

मूल राजस्थानी से अनुवाद : दीनदयाल शर्मा