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आदमी ने
अकेलेपन में
आत्महत्या से बड़ा
कोई अपराध नहीं किया
और
भीड़ ने
विश्व युद्ध से भी ज्यादा
लोगों को कुचला है।
मूल राजस्थानी से अनुवाद : दीनदयाल शर्मा