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"अजनबी देश है यह / सर्वेश्वरदयाल सक्सेना" के अवतरणों में अंतर
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+ | अजनबी देश है यह, जी यहाँ घबराता है | ||
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− | जागिए तो यहाँ मिलती नहीं आहट कोई, | + | जागिए तो यहाँ मिलती नहीं आहट कोई, |
− | नींद में जैसे कोई लौट-लौट जाता है | + | नींद में जैसे कोई लौट-लौट जाता है |
− | होश अपने का भी रहता नहीं मुझे जिस वक्त | + | होश अपने का भी रहता नहीं मुझे जिस वक्त |
− | द्वार मेरा कोई उस वक्त खटखटाता है | + | द्वार मेरा कोई उस वक्त खटखटाता है |
− | शोर उठता है कहीं दूर क़ाफिलों का-सा | + | शोर उठता है कहीं दूर क़ाफिलों का-सा |
− | कोई सहमी हुई आवाज़ में बुलाता है | + | कोई सहमी हुई आवाज़ में बुलाता है |
− | देखिए तो वही बहकी हुई हवाएँ हैं, | + | देखिए तो वही बहकी हुई हवाएँ हैं, |
− | फिर वही रात है, फिर-फिर वही सन्नाटा है | + | फिर वही रात है, फिर-फिर वही सन्नाटा है |
− | हम कहीं और चले जाते हैं अपनी धुन में | + | हम कहीं और चले जाते हैं अपनी धुन में |
− | रास्ता है कि कहीं और चला जाता है | + | रास्ता है कि कहीं और चला जाता है |
− | दिल को नासेह की ज़रूरत है न चारागर की | + | दिल को नासेह की ज़रूरत है न चारागर की |
− | आप ही रोता है औ आप ही समझाता है ।< | + | आप ही रोता है औ आप ही समझाता है । |
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11:18, 26 दिसम्बर 2009 का अवतरण
अजनबी देश है यह, जी यहाँ घबराता है
कोई आता है यहाँ पर न कोई जाता है
जागिए तो यहाँ मिलती नहीं आहट कोई,
नींद में जैसे कोई लौट-लौट जाता है
होश अपने का भी रहता नहीं मुझे जिस वक्त
द्वार मेरा कोई उस वक्त खटखटाता है
शोर उठता है कहीं दूर क़ाफिलों का-सा
कोई सहमी हुई आवाज़ में बुलाता है
देखिए तो वही बहकी हुई हवाएँ हैं,
फिर वही रात है, फिर-फिर वही सन्नाटा है
हम कहीं और चले जाते हैं अपनी धुन में
रास्ता है कि कहीं और चला जाता है
दिल को नासेह की ज़रूरत है न चारागर की
आप ही रोता है औ आप ही समझाता है ।