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14:28, 26 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

तुम मुझे माफ़ नहीं करतीं

पर सारे अपमान पी कर भी
मैं तुम्हें मना लेता हूँ।

हालाँकि तुम कहती हो कि
इसका उल्टा ही सच है।

मैं बाँहें फैलाकर
ज़रा-सा मुस्करा देता हूँ।