भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हमसफ़र / रमा द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो (हमसफ़र/ रमा द्विवेदी का नाम बदलकर हमसफ़र / रमा द्विवेदी कर दिया गया है)
(कोई अंतर नहीं)

22:09, 26 दिसम्बर 2009 का अवतरण


ज़िन्दगी के लंबे सफ़र में,
कोई मनचाहा हमसफ़र मिल जाए।

मौसम कोई भी हो,बंधन कैसे भी हों,
लाख समझाने पर भी,
मन कुछ दूर साथ-साथ,
चलने के लिए कसमसाए.....।

कुछ पल का ही साथ क्यों न सही,
दिल खुशियों से उमड़-उमड़ आए,
क्या दायित्वों के बोझ से कोई,
अपनी क्षणिक खुशियों को छोड़ आए....।

क्या इंसान का संबंधों के सिवा अपना अस्तित्व नहीं?
एक क्षण भी अपनी खुशी से जीने का हक़ नहीं?
दायित्वों की बलिवेदी पर,क्यों?
अपनी छोटी-छोटी खुशियों की बलि चढाए.....।

माना कि संबंधों के लिए जीना आदर्श है,मिसाल है,
किन्तु एक प्रश्न मेरे ज़ेहन में उमड़ता है,पूछ्ता है,
फिर इंसान स्वयं में क्या है?
मेरे प्रश्न का उत्तर कोई तो बताए.....?