भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ग़म न हो पास / जानकीवल्लभ शास्त्री" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 28: | पंक्ति 28: | ||
गंध बर मौन रहा आह! एक मेरा सुमन । | गंध बर मौन रहा आह! एक मेरा सुमन । | ||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− |
18:21, 16 मई 2008 का अवतरण
ग़म न हो पास इसी से उदास मेरा मन ।
साँस चलती है, चिहुँक चेतता नहीं है तन ।।
नींद ऐसी न किसी और को आई होगी,
जाग कर ढूँढती धरती कहाँ है मेरा गगन ।
मौसमी गुल हो निछावर, बहार तुम पर ही,
क़ाबिले दीद ख़िजाँ में खिला है मेरा चमन ।
भूलकर कूल ग़र्क़ कश्तियाँ हुईं कितनी,
लौट मझधार से आया चिरायु ख़ुद मरण ।
बुलबुलों ने दिया दुहरा कलाम ग़ंचों का,
गंध बर मौन रहा आह! एक मेरा सुमन ।