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"ग़म न हो पास / जानकीवल्लभ शास्त्री" के अवतरणों में अंतर

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गंध बर मौन रहा आह! एक मेरा सुमन ।
 
गंध बर मौन रहा आह! एक मेरा सुमन ।
 
 
[[ रक्तमुख / जानकीबल्लभ शास्त्री]]
 
[[Category:कविताएँ]]
 
 
 
कुपथ कुपथ रथ दौड़ाता जो
 
 
पथ निर्देशक वह है,
 
 
लाज लजाती जिसकी कृति से
 
 
धृति उपदेश वह है,
 
 
मूर्त दंभ गढ़ने उठता है
 
 
शील विनय परिभाषा,
 
 
मृत्यू रक्तमुख से देता
 
 
जन को जीवन की आशा,
 
 
जनता धरती पर बैठी है
 
 
नभ में मंच खड़ा है,
 
 
जो जितना है दूर मही से
 
 
उतना वही बड़ा है.
 

18:21, 16 मई 2008 का अवतरण

ग़म न हो पास इसी से उदास मेरा मन ।

साँस चलती है, चिहुँक चेतता नहीं है तन ।।


नींद ऐसी न किसी और को आई होगी,

जाग कर ढूँढती धरती कहाँ है मेरा गगन ।


मौसमी गुल हो निछावर, बहार तुम पर ही,

क़ाबिले दीद ख़िजाँ में खिला है मेरा चमन ।


भूलकर कूल ग़र्क़ कश्तियाँ हुईं कितनी,

लौट मझधार से आया चिरायु ख़ुद मरण ।


बुलबुलों ने दिया दुहरा कलाम ग़ंचों का,

गंध बर मौन रहा आह! एक मेरा सुमन ।