"गूँगी छाया जो कुछ कहती / आरागों" के अवतरणों में अंतर
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16:27, 27 दिसम्बर 2009 का अवतरण
कुछ नहीं
कभी नहीं होगा कुछ और
कुछ न होने के सिवा
कहती है छाया
और उसके हाथ समेट लेते हैं कुछ नहीं
धूप अगर जीत भी जाए
यही होगा मेरा जवाब
छाया हँसी
एक बेहँसी हँसी
खोखली हँसी हँसी वह
जीत भी जाए अगर एक दिन
दिन अगर अंततः एक दिन हो
कुछ नहीं
और नहीं होगा कुछ और
कुछ न होने के सिवाय
दुहराया छाया ने अपने ही भीतर से
जैसे कुछ न सुनता हो उसे
न कोई, न कभी, न कुछ
मैंने अपने होंठ छुए
देखने के लिए
जो न देख पायेंगी मेरी ऑंखें
होंठों पर आए शब्दों को छुआ मैंने
लेकिन शब्दों में था कुछ नहीं
मेरे पास न रह गई थी होंठों की छाया
न रह गई थी मेरे पास शब्दों की छाया
फिर भी होना तो चाहिए था यही
कि होती कहीं किसी की छाया
मानने को हुआ मेरा दिल
कि दिन को दर्शाती है छाया
और कुछ न होने के खिलाफ़
रात को दर्शाता है दिन
फिर मेरे पास भले ही
न हो धूप और न छाँव
शायद कोई और
लेकिन कुछ नहीं वह
अगर कुछ नहीं हो तो
कुछ नहीं की बर्फ़ है वह।
लेज़ादिय से(1982) से
मूल फ़्रांसिसी से अनुवाद : हेमन्त जोशी