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"जलसाघर (कविता) / श्रीकांत वर्मा" के अवतरणों में अंतर

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|रचनाकार=श्रीकांत वर्मा
 
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<poem>
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-यही सोचते हुए गुज़र रहा हूँ मैं कि गुज़र गयी
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बगल से
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::::::गोली दनाक से।
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राहजनी हो या क्रान्ति ? जो भी हो, मुझको
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गुज़रना ही रहा है
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::::::::शेष।
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देश
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:::::::नक्शे में 
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देखता रहा हूँ हर साल नक्शा बदलता है
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कच्छ हो या चीन
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:::::::तब तक
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दूसरी गोली दनाक से।
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हद हो गयी, मुझको कहना ही पड़ेगा, हद कहीं नहीं
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चले आओ अंदर
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:::::::मुझको उघाड़कर
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चूतड़ पर बेंत मार
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चेहरे पर लिख दो यह गधा है। तब भी जो जहाँ
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है, वहीं बँधा है
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:::::अपनी बेहयाई को
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सँवारता हुआ चौदह पैसे की कंघी से 
  
-यही सोचते हुए गुज़र रहा हूँ मैं कि गुज़र गयी<br>
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चले जाओ  
बगल से<br>
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चकले पर, टाट पर, जहन्नुम में, लाट पर,  
::::::गोली दनाक से।<br>
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खुदबुदाते हुए प्रेम, बिलबिलाती हुई इच्छा, हिनहिनाते  
राहजनी हो या क्रान्ति ? जो भी हो, मुझको<br>
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हुए क्रोध को मरोड़ दो। क्या होगा ? छूँछा  
गुज़रना ही रहा है<br>
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होता हूँ हर बार ताकि और भी मवाद हो।
::::::::शेष।<br>
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देश<br>
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देखता रहा हूँ हर साल नक्शा बदलता है<br>
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कच्छ हो या चीन<br>
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:::::::तब तक<br>
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दूसरी गोली दनाक से।<br>
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हद हो गयी, मुझको कहना ही पड़ेगा, हद कहीं नहीं<br>
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चले आओ अंदर<br>
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:::::::मुझको उघाड़कर<br>
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चूतड़ पर बेंत मार<br>
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चेहरे पर लिख दो यह गधा है। तब भी जो जहाँ<br>
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है, वहीं बँधा है<br>
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:::::अपनी बेहयाई को<br>
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सँवारता हुआ चौदह पैसे की कंघी से<br><br>
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चले जाओ<br>
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चकले पर, टाट पर, जहन्नुम में, लाट पर,<br>
+
खुदबुदाते हुए प्रेम, बिलबिलाती हुई इच्छा, हिनहिनाते<br>
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हुए क्रोध को मरोड़ दो। क्या होगा ? छूँछा<br>
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होता हूँ हर बार ताकि और भी मवाद हो।<br><br>
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दाद हो खुजली हो, खाज हो हरेक के लिए<br>
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दाद हो खुजली हो, खाज हो हरेक के लिए  
है<br>
+
है  
:::::::मुफीद,<br>
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:::::::मुफीद,  
आजमाइए, मथुरा का सूरदास मलहम।<br>
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आजमाइए, मथुरा का सूरदास मलहम।  
क्या कहा ? सांडे का तेल ? नहीं, नहीं,<br>
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क्या कहा ? सांडे का तेल ? नहीं, नहीं,  
कामातुर स्त्रियाँ, लौट जायें, वामाएँ,<br>
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कामातुर स्त्रियाँ, लौट जायें, वामाएँ,  
मैंने गुज़ार दी, ऐसे ही, लौट जायें<br>
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मैंने गुज़ार दी, ऐसे ही, लौट जायें  
:::::सब अपने-अपने ठिकानों पर<br>
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:::::सब अपने-अपने ठिकानों पर  
पाप संसार में,<br>
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पाप संसार में,  
::मन्त्री अस्तबल में,<br>
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::मन्त्री अस्तबल में,  
::पाखण्डी गर्भ में,<br>
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::पाखण्डी गर्भ में,  
::::अफसर जिमखानों में।<br><br>
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::::अफसर जिमखानों में।
  
वर्षा नहीं होगी, खबरों के अपच से, सब-के-सब मरेंगे<br>
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वर्षा नहीं होगी, खबरों के अपच से, सब-के-सब मरेंगे  
एक राजधानी को छोड़<br>
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एक राजधानी को छोड़  
उठती है मरोड़ अभी से टीका लगवाइए घी का<br>
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उठती है मरोड़ अभी से टीका लगवाइए घी का  
भाव दूना हो गया है सूना<br>
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भाव दूना हो गया है सूना  
लगता है लस्सा ही<br>
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लगता है लस्सा ही  
:::::::नहीं रहा।<br>
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:::::::नहीं रहा।  
क्या कहा ? नहीं, नहीं मथुरा का सूरदास मलहम<br>
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क्या कहा ? नहीं, नहीं मथुरा का सूरदास मलहम  
मुफीद है<br>
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मुफीद है  
::::दाद हो, खुजली हो, खाज हो,<br>
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::::दाद हो, खुजली हो, खाज हो,  
- जिस किसी का राज हो<br>
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- जिस किसी का राज हो  
मुझको मंजूर नहीं किसी की भी शर्त, किसी की दलील<br>
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मुझको मंजूर नहीं किसी की भी शर्त, किसी की दलील  
::::कि उसने मारा मेरे दुश्मन को<br>
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कोई मेरा वकील नहीं,<br>
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कोई मेरा वकील नहीं,  
मर्दुमशुमारी के पहले ही मुझे कूच कर जाना है हरेक कूचे से<br>
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मर्दुमशुमारी के पहले ही मुझे कूच कर जाना है हरेक कूचे से  
::::सब की मतदान पेटियों में<br>
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::::सब की मतदान पेटियों में  
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मुझको मंजूर नहीं किसी की शर्त।<br><br>
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मुझको मंजूर नहीं किसी की शर्त।
  
मुझ को गुज़रना है भरी हुई भीड़ से, मक्खियों के <br>
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मुझ को गुज़रना है भरी हुई भीड़ से, मक्खियों के
झुण्ड से<br>
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एक-एक कर अपने सभी दोस्तों के नजदीक से<br>
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एक-एक कर अपने सभी दोस्तों के नजदीक से  
ठीक से<br>
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चलो कहकर, मुझको धकियाता है, ऊलजुलूल,<br>
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चलो कहकर, मुझको धकियाता है, ऊलजुलूल,  
आँखें तरेर कर<br>
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कहाँ लिये जाते हो मुझ को मेरे विरुद्ध?<br>
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कहाँ लिये जाते हो मुझ को मेरे विरुद्ध?  
छोड़ दो, छोड़ो, छोड़ो वरना ! वरना के आगे<br>
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कुछ नहीं, बस स्टॉप है जिसका<br>
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मुँह<br>
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किसी की तरफ नहीं।<br>
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किसी की तरफ नहीं।  
मुझे भी बदल दो बस स्टॉप में<br>
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मुझे भी बदल दो बस स्टॉप में  
छोड़ <br>
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दिया गया है<br>
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मुझे अनंतकाल तक<br>
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मुझे अनंतकाल तक  
भटकने<br>
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के लिए<br>
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इस प्रलाप में<br><br>
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इस प्रलाप में
  
ऑनरेरी सर्जन। कनसल्टेंट, मिलने का समय, पाँच से सात,<br>
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ऑनरेरी सर्जन। कनसल्टेंट, मिलने का समय, पाँच से सात,  
मेरा उद्धार करो--<br>
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मेरा स्वाद बदल रहा है, रहते-रहते<br>
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मेरा स्वाद बदल रहा है, रहते-रहते  
मैं भी<br>
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यहाँ का<br>
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बदलो, बदलो अपने मिलने का समय, यह समय वह समय<br>
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बदलो, बदलो अपने मिलने का समय, यह समय वह समय  
नहीं<br><br>
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दुख, लेन-देन, रह गया माल, दुर्घटना, वेश्या, घेराव,<br>
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दुख, लेन-देन, रह गया माल, दुर्घटना, वेश्या, घेराव,  
कम्युनिस्ट पार्टी की जनता, जनसंघ का लोक<br>
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कम्युनिस्ट पार्टी की जनता, जनसंघ का लोक  
किये का शोक, अनकिये का<br>
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किये का शोक, अनकिये का  
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छा गया है<br>
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खुदाबख्श हिजड़े की बेवजह मौत पर, फौजदारी<br>
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खुदाबख्श हिजड़े की बेवजह मौत पर, फौजदारी  
कायम हो,<br>
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कायम हो,  
कायम हो, तुम अब तक, वैसे<br>
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कायम हो, तुम अब तक, वैसे  
सच यह है<br>
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मैं तुमको पहचान नहीं पाया था अबकी,<br>
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मैं तुमको पहचान नहीं पाया था अबकी,  
जाने कब-कब की उतर रही है<br>
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जाने कब-कब की उतर रही है  
साथ-साथ<br>
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साथ-साथ  
छतों से, पलंग से, सीढ़ी से<br>
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छतों से, पलंग से, सीढ़ी से  
नीली, पीली, बजी हुई<br>
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नीली, पीली, बजी हुई  
निगल रही हैं<br>
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अंतिम दृश्य को<br><br>
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अंतिम दृश्य को
  
भविष्य को उँगली पर रखता है ज्योतिषि<br>
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भविष्य को उँगली पर रखता है ज्योतिषि  
बनिया तिजोरी में,<br>
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बनिया तिजोरी में,  
::::पकड़ा गया था जिस चोरी में<br>
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::::पकड़ा गया था जिस चोरी में  
तीन साल पहले अज्ञानसिंह, उस का अब भेद<br>
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तीन साल पहले अज्ञानसिंह, उस का अब भेद  
खुला<br><br>
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खुला
  
खुला-खुला लगता है, वैसे, पर सचमुच<br>
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खुला-खुला लगता है, वैसे, पर सचमुच  
डरा-डरा,<br>
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डरा-डरा,  
हरात-भरा लगता है, सौवाँ, मैंने क्या<br>
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हरात-भरा लगता है, सौवाँ, मैंने क्या  
ठेका ले रखा है बाकी निन्यानवे का<br>
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ठेका ले रखा है बाकी निन्यानवे का  
फेर<br>
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फेर  
देर वैसे भी हो चुकी, चौसर की तरह<br>
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देर वैसे भी हो चुकी, चौसर की तरह  
बिछे<br>
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बिछे  
नक्शे पर बैठ गया कौवों का प्रसंग। पृथ्वी का<br>
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नक्शे पर बैठ गया कौवों का प्रसंग। पृथ्वी का  
हिसाब<br>
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हिसाब  
हो रहा है--<br>
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हो रहा है--  
मुझको इसी बात पर काँव-काँव करने की छूट दो,<br>
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मुझको इसी बात पर काँव-काँव करने की छूट दो,  
क्षमा करो,<br>
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क्षमा करो,  
छोड़ दो,<br>
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छोड़ दो,  
रिहाई को बचा ही क्या अब, एक<br>
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रिहाई को बचा ही क्या अब, एक  
और ठन्डस्नान,<br>
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और ठन्डस्नान,  
एक<br>
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और मोहभंग<br>
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और मोहभंग  
सबकुछ प्रतिकूल था, तब भी सम्भव किया मैंने<br>
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सबकुछ प्रतिकूल था, तब भी सम्भव किया मैंने  
कविता को<br>
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कविता को  
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कुछ अपने आपको, <br>
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कुछ अपने आपको,
धन्यवाद!<br><br>
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धन्यवाद!
  
तोड़ता है यथास्थिति, मनसब नहीं बल्कि<br>
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तोड़ता है यथास्थिति, मनसब नहीं बल्कि  
गलत बीज<br>
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गलत बीज  
टूटता है सब कुछ<br>
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टूटता है सब कुछ  
बस धनुष नहीं टूटता<br>
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बस धनुष नहीं टूटता  
तौला गया था जो सोने से<br>
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तौला गया था जो सोने से  
क्या होगा रोने से, यह कहकर, जमुहाई<br>
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क्या होगा रोने से, यह कहकर, जमुहाई  
लेती हुई<br>
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लेती हुई  
सोने को जाती है विधवा<br>
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सोने को जाती है विधवा  
जिसे<br>
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जिसे  
ठोंकता है दिन-भर<br>
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ठोंकता है दिन-भर  
चुंगी का दरोगा, भैंसों का दलाल।<br><br>
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चुंगी का दरोगा, भैंसों का दलाल।
  
देखता है काल या कि देखता भी नहीं है?<br>
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देखता है काल या कि देखता भी नहीं है?  
मुझको<br>
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मुझको  
सन्देह है,<br>
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सन्देह है,  
इसको सुजाक, उसको मधुमेह है।<br><br>
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इसको सुजाक, उसको मधुमेह है।
  
बार-बार पैदा होती है आशंका, बार-बार मरता है<br>
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बार-बार पैदा होती है आशंका, बार-बार मरता है  
वंश।<br><br>
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वंश।
  
क्या मैं इसी तरह, बिल्कुल बेलाग, यहाँ से<br>
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क्या मैं इसी तरह, बिल्कुल बेलाग, यहाँ से  
गुज़र जाऊँ ?<br>
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गुज़र जाऊँ ?  
हे ईश्वर ! मुझको क्षमा करना, निर्णय<br>
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हे ईश्वर ! मुझको क्षमा करना, निर्णय  
कल लूँगा, जब<br>
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कल लूँगा, जब  
 
निर्णय हो चुका होगा।
 
निर्णय हो चुका होगा।
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</poem>

14:33, 29 दिसम्बर 2009 का अवतरण

-यही सोचते हुए गुज़र रहा हूँ मैं कि गुज़र गयी
बगल से
गोली दनाक से।
राहजनी हो या क्रान्ति ? जो भी हो, मुझको
गुज़रना ही रहा है
शेष।
देश
नक्शे में
देखता रहा हूँ हर साल नक्शा बदलता है
कच्छ हो या चीन
तब तक
दूसरी गोली दनाक से।
हद हो गयी, मुझको कहना ही पड़ेगा, हद कहीं नहीं
चले आओ अंदर
मुझको उघाड़कर
चूतड़ पर बेंत मार
चेहरे पर लिख दो यह गधा है। तब भी जो जहाँ
है, वहीं बँधा है
अपनी बेहयाई को
सँवारता हुआ चौदह पैसे की कंघी से

चले जाओ
चकले पर, टाट पर, जहन्नुम में, लाट पर,
खुदबुदाते हुए प्रेम, बिलबिलाती हुई इच्छा, हिनहिनाते
हुए क्रोध को मरोड़ दो। क्या होगा ? छूँछा
होता हूँ हर बार ताकि और भी मवाद हो।

दाद हो खुजली हो, खाज हो हरेक के लिए
है
मुफीद,
आजमाइए, मथुरा का सूरदास मलहम।
क्या कहा ? सांडे का तेल ? नहीं, नहीं,
कामातुर स्त्रियाँ, लौट जायें, वामाएँ,
मैंने गुज़ार दी, ऐसे ही, लौट जायें
सब अपने-अपने ठिकानों पर
पाप संसार में,
मन्त्री अस्तबल में,
पाखण्डी गर्भ में,
अफसर जिमखानों में।

वर्षा नहीं होगी, खबरों के अपच से, सब-के-सब मरेंगे
एक राजधानी को छोड़
उठती है मरोड़ अभी से टीका लगवाइए घी का
भाव दूना हो गया है सूना
लगता है लस्सा ही
नहीं रहा।
क्या कहा ? नहीं, नहीं मथुरा का सूरदास मलहम
मुफीद है
दाद हो, खुजली हो, खाज हो,
- जिस किसी का राज हो
मुझको मंजूर नहीं किसी की भी शर्त, किसी की दलील
कि उसने मारा मेरे दुश्मन को
कोई मेरा वकील नहीं,
मर्दुमशुमारी के पहले ही मुझे कूच कर जाना है हरेक कूचे से
सब की मतदान पेटियों में
कम होगा एक-एक वोट,
मुझको मंजूर नहीं किसी की शर्त।

मुझ को गुज़रना है भरी हुई भीड़ से, मक्खियों के
झुण्ड से
एक-एक कर अपने सभी दोस्तों के नजदीक से
ठीक से
चलो कहकर, मुझको धकियाता है, ऊलजुलूल,
आँखें तरेर कर
घेर कर
कहाँ लिये जाते हो मुझ को मेरे विरुद्ध?
छोड़ दो, छोड़ो, छोड़ो वरना ! वरना के आगे
कुछ नहीं, बस स्टॉप है जिसका
मुँह
किसी की तरफ नहीं।
मुझे भी बदल दो बस स्टॉप में
छोड़
दिया गया है
मुझे अनंतकाल तक
भटकने
के लिए
इस प्रलाप में

ऑनरेरी सर्जन। कनसल्टेंट, मिलने का समय, पाँच से सात,
मेरा उद्धार करो--
मेरा स्वाद बदल रहा है, रहते-रहते
मैं भी
यहाँ का
हो चला
हो चली
शाम
बदलो, बदलो अपने मिलने का समय, यह समय वह समय
नहीं

दुख, लेन-देन, रह गया माल, दुर्घटना, वेश्या, घेराव,
कम्युनिस्ट पार्टी की जनता, जनसंघ का लोक
किये का शोक, अनकिये का
शोक
छा गया है
खुदाबख्श हिजड़े की बेवजह मौत पर, फौजदारी
कायम हो,
कायम हो, तुम अब तक, वैसे
सच यह है
मैं तुमको पहचान नहीं पाया था अबकी,
जाने कब-कब की उतर रही है
साथ-साथ
छतों से, पलंग से, सीढ़ी से
नीली, पीली, बजी हुई
निगल रही हैं
अंतिम दृश्य को

भविष्य को उँगली पर रखता है ज्योतिषि
बनिया तिजोरी में,
पकड़ा गया था जिस चोरी में
तीन साल पहले अज्ञानसिंह, उस का अब भेद
खुला

खुला-खुला लगता है, वैसे, पर सचमुच
डरा-डरा,
हरात-भरा लगता है, सौवाँ, मैंने क्या
ठेका ले रखा है बाकी निन्यानवे का
फेर
देर वैसे भी हो चुकी, चौसर की तरह
बिछे
नक्शे पर बैठ गया कौवों का प्रसंग। पृथ्वी का
हिसाब
हो रहा है--
मुझको इसी बात पर काँव-काँव करने की छूट दो,
क्षमा करो,
छोड़ दो,
रिहाई को बचा ही क्या अब, एक
और ठन्डस्नान,
एक
और मोहभंग
सबकुछ प्रतिकूल था, तब भी सम्भव किया मैंने
कविता को
और
कुछ अपने आपको,
धन्यवाद!

तोड़ता है यथास्थिति, मनसब नहीं बल्कि
गलत बीज
टूटता है सब कुछ
बस धनुष नहीं टूटता
तौला गया था जो सोने से
क्या होगा रोने से, यह कहकर, जमुहाई
लेती हुई
सोने को जाती है विधवा
जिसे
ठोंकता है दिन-भर
चुंगी का दरोगा, भैंसों का दलाल।

देखता है काल या कि देखता भी नहीं है?
मुझको
सन्देह है,
इसको सुजाक, उसको मधुमेह है।

बार-बार पैदा होती है आशंका, बार-बार मरता है
वंश।

क्या मैं इसी तरह, बिल्कुल बेलाग, यहाँ से
गुज़र जाऊँ ?
हे ईश्वर ! मुझको क्षमा करना, निर्णय
कल लूँगा, जब
निर्णय हो चुका होगा।