भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सदस्य:KRaj" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: हलात के कदमो मे कलन्दर नहीँ गिरता, गर टूटे तारा तो जमी पर नहीँ गिरत…) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | हलात के कदमो मे कलन्दर नहीँ गिरता, | + | हलात के कदमो मे कलन्दर नहीँ गिरता, |
गर टूटे तारा तो जमी पर नहीँ गिरता। | गर टूटे तारा तो जमी पर नहीँ गिरता। | ||
बडे शौक से गिरते हैँ समन्दर मेँ दरिया, | बडे शौक से गिरते हैँ समन्दर मेँ दरिया, | ||
पर किसी दरिया मेँ समन्दर नहीँ गिरता। | पर किसी दरिया मेँ समन्दर नहीँ गिरता। |
22:33, 29 दिसम्बर 2009 का अवतरण
हलात के कदमो मे कलन्दर नहीँ गिरता, गर टूटे तारा तो जमी पर नहीँ गिरता। बडे शौक से गिरते हैँ समन्दर मेँ दरिया, पर किसी दरिया मेँ समन्दर नहीँ गिरता।