भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अब नहीं / संतरण / महेन्द्र भटनागर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
छो (अब नहीं (संतरण) / महेन्द्र भटनागर का नाम बदलकर अब नहीं / संतरण / महेन्द्र भटनागर कर दिया गया है) |
|||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=संतरण / महेन्द्र भटनागर | |संग्रह=संतरण / महेन्द्र भटनागर | ||
}} | }} | ||
− | अब नहीं मेरे गगन पर | + | {{KKCatKavita}} |
− | चाँद निकलेगा ! | + | {{KKCatGeet}} |
+ | <poem> | ||
+ | अब नहीं मेरे गगन पर | ||
+ | चाँद निकलेगा ! | ||
− | बीत जाएगी तुम्हारी याद में सारी उमर | + | बीत जाएगी तुम्हारी याद में सारी उमर |
− | पार करनी है अँधेरी और एकाकी डगर ; | + | पार करनी है अँधेरी और एकाकी डगर ; |
− | :किस तरह अवसन्न जीवन | + | :किस तरह अवसन्न जीवन |
− | :बोझ सँभलेगा ! | + | :बोझ सँभलेगा ! |
− | शांत, बेबस, मूक, निष्फल खो उमंगों को हृदय | + | शांत, बेबस, मूक, निष्फल खो उमंगों को हृदय |
− | चिर उदासी मग्न, निर्धन, खो तरंगों को हृदय | + | चिर उदासी मग्न, निर्धन, खो तरंगों को हृदय |
− | + | :अब नहीं जीवन-जलधि में | |
− | :अब नहीं जीवन-जलधि में | + | :ज्वार मचलेगा! |
− | :ज्वार मचलेगा ! | + | |
− | नेह रंजित, हर्ष पूरित, इंद्रधनुषी फाग को | + | नेह रंजित, हर्ष पूरित, इंद्रधनुषी फाग को |
− | उपवनों में गूँजते रस-सिक्त पंचम-राग को | + | उपवनों में गूँजते रस-सिक्त पंचम-राग को |
− | :क्या पता था, इस तरह | + | :क्या पता था, इस तरह |
− | :प्रारब्ध निगलेगा !< | + | :प्रारब्ध निगलेगा! |
+ | </poem> |
14:58, 30 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
अब नहीं मेरे गगन पर
चाँद निकलेगा !
बीत जाएगी तुम्हारी याद में सारी उमर
पार करनी है अँधेरी और एकाकी डगर ;
किस तरह अवसन्न जीवन
बोझ सँभलेगा !
शांत, बेबस, मूक, निष्फल खो उमंगों को हृदय
चिर उदासी मग्न, निर्धन, खो तरंगों को हृदय
अब नहीं जीवन-जलधि में
ज्वार मचलेगा!
नेह रंजित, हर्ष पूरित, इंद्रधनुषी फाग को
उपवनों में गूँजते रस-सिक्त पंचम-राग को
क्या पता था, इस तरह
प्रारब्ध निगलेगा!