भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"शुभकामनाएँ / संतरण / महेन्द्र भटनागर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो ()
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=संतरण / महेन्द्र भटनागर
 
|संग्रह=संतरण / महेन्द्र भटनागर
 
}}
 
}}
जो लड़ रहे<br>
+
{{KKCatKavita}}
साम्राज्यवादी शक्तियों से देश,<br>
+
<poem>
जिनकी वीर जनता ने<br>
+
जो लड़ रहे  
किया धारण शहीदी वेश<br>
+
साम्राज्यवादी शक्तियों से देश,  
भेजता हूँ मैं उन्हें शुभकामनाएँ —<br>
+
जिनकी वीर जनता ने  
::हो विजय !<br>
+
किया धारण शहीदी वेश  
भेजता विश्वास हूँ —<br>
+
भेजता हूँ मैं उन्हें शुभकामनाएँ —  
हे अभय !<br>
+
::हो विजय !  
अन्तिम विजय तुमको मिलेगी,<br>
+
भेजता विश्वास हूँ —  
आततायी-दुर्ग की दृढ़ नींव<br>
+
हे अभय !  
::निश्चय ही हिलेगी,<br>
+
अन्तिम विजय तुमको मिलेगी,  
स्वार्थमय<br>
+
आततायी-दुर्ग की दृढ़ नींव  
साम्राज्य-लिप्सा से सनी<br>
+
::निश्चय ही हिलेगी,  
::सत्ता ढहेगी !<br>
+
स्वार्थमय  
मुक्त जनता<br>
+
साम्राज्य-लिप्सा से सनी  
उठ<br>
+
::सत्ता ढहेगी !  
बुलन्दी से<br>
+
मुक्त जनता  
निडर बन<br>
+
उठ  
मातृ-भू की जय कहेगी !<br><br>
+
बुलन्दी से  
 +
निडर बन  
 +
मातृ-भू की जय कहेगी !
  
जानते हैं हम<br>
+
जानते हैं हम  
जानते हो तुम<br>
+
जानते हो तुम  
जगत की वस्तु सर्वोत्तम<br>
+
जगत की वस्तु सर्वोत्तम  
व्यक्ति की स्वाधीनता है<br>
+
व्यक्ति की स्वाधीनता है  
:व्यक्ति के हित में !<br>
+
:व्यक्ति के हित में !  
धरा पर<br>
+
धरा पर  
एक मानव भी<br>
+
एक मानव भी  
न वंचित हो<br>
+
न वंचित हो  
प्रथम अधिकार से<br>
+
प्रथम अधिकार से  
स्वाधीन जीवन से।<br>
+
स्वाधीन जीवन से।  
अतः<br>
+
अतः  
संघर्ष जो तुम कर रहे हो,<br>
+
संघर्ष जो तुम कर रहे हो,  
देश का बूढ़ी शिराओं में<br>
+
देश का बूढ़ी शिराओं में  
युवा बल भर रहे हो<br>
+
युवा बल भर रहे हो  
शक्ति उससे पा रहा मैं भी !<br>
+
शक्ति उससे पा रहा मैं भी !  
राष्ट्र की स्वाधीनता का गीत<br>
+
राष्ट्र की स्वाधीनता का गीत  
मिल कर गा रहा मैं भी !<br>
+
मिल कर गा रहा मैं भी !  
 +
</poem>

14:58, 30 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

जो लड़ रहे
साम्राज्यवादी शक्तियों से देश,
जिनकी वीर जनता ने
किया धारण शहीदी वेश
भेजता हूँ मैं उन्हें शुभकामनाएँ —
हो विजय !
भेजता विश्वास हूँ —
हे अभय !
अन्तिम विजय तुमको मिलेगी,
आततायी-दुर्ग की दृढ़ नींव
निश्चय ही हिलेगी,
स्वार्थमय
साम्राज्य-लिप्सा से सनी
सत्ता ढहेगी !
मुक्त जनता
उठ
बुलन्दी से
निडर बन
मातृ-भू की जय कहेगी !

जानते हैं हम
जानते हो तुम
जगत की वस्तु सर्वोत्तम
व्यक्ति की स्वाधीनता है
व्यक्ति के हित में !
धरा पर
एक मानव भी
न वंचित हो
प्रथम अधिकार से
स्वाधीन जीवन से।
अतः
संघर्ष जो तुम कर रहे हो,
देश का बूढ़ी शिराओं में
युवा बल भर रहे हो
शक्ति उससे पा रहा मैं भी !
राष्ट्र की स्वाधीनता का गीत
मिल कर गा रहा मैं भी !