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|संग्रह=मृत्यु-बोध / महेन्द्र भटनागर
 
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आदमी में —
 
आदमी में —
 
 
चाह जीवन की
 
चाह जीवन की
 
 
सनातन और सर्वाधिक प्रबल है;
 
सनातन और सर्वाधिक प्रबल है;
 
 
  
 
जब कि
 
जब कि
 
 
हर जीवन्त की
 
हर जीवन्त की
 
 
अन्तिम सचाई
 
अन्तिम सचाई
 
 
मृत्यु है !
 
मृत्यु है !
 
 
हाँ, अन्त निश्चित है,
 
हाँ, अन्त निश्चित है,
 
 
अटल है !
 
अटल है !
 
 
  
 
लेकिन / सत्य है यह भी —
 
लेकिन / सत्य है यह भी —
 
 
अमरता की: अजरता की
 
अमरता की: अजरता की
 
 
लहकती वासना का वेग
 
लहकती वासना का वेग
 
 
होगा कम नहीं,
 
होगा कम नहीं,
 
 
अद्भुत पराक्रम आदमी का
 
अद्भुत पराक्रम आदमी का
 
 
चाहता कलरव,
 
चाहता कलरव,
 
 
रुदन मातम नहीं !
 
रुदन मातम नहीं !
 
 
हर बार
 
हर बार
 
 
ध्रुव मृति की चुनौती से
 
ध्रुव मृति की चुनौती से
 
 
निरन्तर जूझना स्वीकार !
 
निरन्तर जूझना स्वीकार !
 
 
मृत्युंजय
 
मृत्युंजय
 
 
बनेगा वह; बनेगा वह !
 
बनेगा वह; बनेगा वह !
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15:02, 1 जनवरी 2010 का अवतरण

आदमी में —
चाह जीवन की
सनातन और सर्वाधिक प्रबल है;

जब कि
हर जीवन्त की
अन्तिम सचाई
मृत्यु है !
हाँ, अन्त निश्चित है,
अटल है !

लेकिन / सत्य है यह भी —
अमरता की: अजरता की
लहकती वासना का वेग
होगा कम नहीं,
अद्भुत पराक्रम आदमी का
चाहता कलरव,
रुदन मातम नहीं !
हर बार
ध्रुव मृति की चुनौती से
निरन्तर जूझना स्वीकार !
मृत्युंजय
बनेगा वह; बनेगा वह !