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"विचित्र / जूझते हुए / महेन्द्र भटनागर" के अवतरणों में अंतर
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− | धन का, पद का, पशु का | + | धन का, पद का, पशु का |
− | साम्राज्य है, | + | साम्राज्य है, |
− | यह कैसा स्वराज्य है ? | + | यह कैसा स्वराज्य है? |
− | धन, पद, पशु | + | धन, पद, पशु |
− | भारत-भाग्य-विधाता हैं, | + | भारत-भाग्य-विधाता हैं, |
− | चारों दिशाओं में | + | चारों दिशाओं में |
− | उन्हीं का जय-जयकार, | + | उन्हीं का जय-जयकार, |
− | उन्हीं का अहंकार | + | उन्हीं का अहंकार |
− | व्याप्त है, | + | व्याप्त है, |
− | परिव्याप्त है, | + | परिव्याप्त है, |
− | और सब-कुछ समाप्त है ! | + | और सब-कुछ समाप्त है! |
− | शासन | + | शासन |
− | अंधा है, बहरा है, | + | अंधा है, बहरा है, |
− | जन-जन का संकट गहरा है ! | + | जन-जन का संकट गहरा है! |
− | ::(खोटा नसीब है !) | + | ::(खोटा नसीब है!) |
− | लगता है — | + | लगता है — |
− | परिवर्तन दूर नहीं, | + | परिवर्तन दूर नहीं, |
− | ::क़रीब है ! | + | ::क़रीब है! |
− | किन्तु आज | + | किन्तु आज |
− | यह सब | + | यह सब |
− | ::कितना अजीब है !< | + | ::कितना अजीब है! |
+ | </poem> |
15:42, 1 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
यह कितना अजीब है!
आज़ादी के
तीन-तीन दशक
बीत जाने के बाद भी
पाँच-पाँच पंचवर्षीय योजनाओं के
रीत जाने के बाद भी
मेरे देश का
आम आदमी ग़रीब है!
बेहद ग़रीब है!
यह कितना अजीब है!
सर्वत्र
धन का, पद का, पशु का
साम्राज्य है,
यह कैसा स्वराज्य है?
धन, पद, पशु
भारत-भाग्य-विधाता हैं,
चारों दिशाओं में
उन्हीं का जय-जयकार,
उन्हीं का अहंकार
व्याप्त है,
परिव्याप्त है,
और सब-कुछ समाप्त है!
शासन
अंधा है, बहरा है,
जन-जन का संकट गहरा है!
(खोटा नसीब है!)
लगता है —
परिवर्तन दूर नहीं,
क़रीब है!
किन्तु आज
यह सब
कितना अजीब है!