भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"उद्योग / जय गोस्वामी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जय गोस्वामी |संग्रह= }} <Poem> ज़मीन छीन लेना ही, अहम ...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | |||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=जय गोस्वामी | |रचनाकार=जय गोस्वामी | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatKavita}} | |
<Poem> | <Poem> | ||
ज़मीन छीन लेना ही, अहम काम ! | ज़मीन छीन लेना ही, अहम काम ! |
20:32, 2 जनवरी 2010 का अवतरण
ज़मीन छीन लेना ही, अहम काम !
बेघर करना ही, अहम काम !
चलो गर्दनिया देकर खदेड़ दो,
उसके बाद खड़े करो,
हमारी छाती पर,
ऊँचे-ऊँचे उद्योग ! उद्धत समाज !
साथ में कुछेक पुलिस का होना, ज़रूरी है
वर्ना कैसे छल-बल से,
मुझे 'बाहरी आदमी' कहकर
मेरी हड्डी-पसली तोड़ेंगे, भइये?
आज से यही है गणतंत्र !
आज से यही है गणतंत्र !
बांग्ला से अनुवाद : सुशील गुप्ता