भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"द्वार खोलो दौड़कर / अश्वघोष" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अश्वघोष |संग्रह=जेबों में डर / अश्वघोष }} [[Category:गज़…)
(कोई अंतर नहीं)

08:16, 3 जनवरी 2010 का अवतरण

द्वार खोलो दैड़कर आ गया अख़बार
छटपटाती चेतना पर छा गया अख़बार

हर बशर खुशहाल है इस भुखमरी में भी
आँकड़ो की मारफ़त समझा गया अख़बार

कल मरीं कुछ औरतें स्टोव से जलकर
आज उनकी राख को जला गया अख़बार

हर तरफ ख़ामोशियों के रेंगते अजगर
एक सुर्खी फ़ेककर दिखला गया अख़बार

कल पुलिस की लाठियों से मर गया बुधिया
लाश ग़ायब है अभी बतला गया अख़बार