भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हादसा-दर-हादसा / अश्वघोष" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अश्वघोष |संग्रह=जेबों में डर / अश्वघोष }} [[Category:गज़…)
(कोई अंतर नहीं)

09:30, 3 जनवरी 2010 का अवतरण

हादसा-दर-हादसा-दर-हादसा होता हुआ
क्या कभी देखा किसी ने आसमाँ रोता हुआ

ये ज़मीं प्यासी है फिर भी जानकर अनजान-सा
हुक्मरा-सा एक बादल रह गया सोता हुआ

मेरी आँखों में धुआँ है और कानों में है शोर
सोच की बैसाखियों अर ज़िस्म को ढोता हुआ

एक दरिया कल मिला था राजधानी में हमें
आदमी के खून से अपना बदन धोता हुआ

चल रहा हूँ जानकर भी अजनबी है सब यहाँ
प्यार की हसरत में एक पहचान को बोता हुआ