भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"डर / बसंत त्रिपाठी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बसंत त्रिपाठी }} {{KKCatKavita‎}} <poem> परिन्दे को इश्क हो जा…)
 
(कोई अंतर नहीं)

21:42, 4 जनवरी 2010 के समय का अवतरण

परिन्दे को इश्क हो जाए पिंजरे से
फूलों से बन्द हो जाए महक का उठना
शामें न उदास करती हों
न ख़ुश
हमेशा काम से ही निकलें घर से
बच्चे तुतलाएँ नहीं
चिड़िया घोंसला न बनाएँ घरों में
गिलहरी और तोते के रंग भूल जाएँ
भूल जाएँ अपने बचपन की शक्ल
ट्रेन सुरंग से गुज़र रही हो
और पता ही न चले।