भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वज़ह-बेवज़ह / बसंत त्रिपाठी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बसंत त्रिपाठी }} {{KKCatKavita‎}} <poem> क्या हुआ गर लोग घूम रह…)
 
(कोई अंतर नहीं)

21:53, 4 जनवरी 2010 के समय का अवतरण

क्या हुआ
गर लोग घूम रहे सड़कों पर बेवज़ह
चौराहे पर खड़े गप्प हाँकते

वज़ह की मारी शफ़्फ़ाक दुनिया में
कुछ तो बेवज़ह हो

शुक्रिया, खाली लोगो!