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प्रतिकूल / रामधारी सिंह "दिनकर"
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12:52, 6 जनवरी 2010
उसकी इच्छा थी, उठा गूँज गर्जन गभीर,
मैं धूमकेतु - सा उगा तिमिर का
हॄदय
हृदय
चीर।
मृत्तिका - तिलक ले कर प्रभु का आदेश मान,
वाणी, पर, अब तक विफल मुझे दे रही खेद,
टकराकर भी सकती न वज्र का
हॄदय
हृदय
भेद।
जिनके हित मैंने कण्ठ फाड़कर किया नाद,
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