''क्या धमकाता है काल ? अरे, आ जा, मुट्ठी में बन्द करूं .<br>
छुट्टी पाऊं, तुझको समाप्त कर दूं, निज को स्वच्छन्द करूं .<br>
ओ शल्य ! हयों को तेज करो, ले चलो उडाकर उड़ाकर शीघ्र वहां ,<br>
गोविन्द-पार्थ के साथ डटे हों चुनकर सारे वीर जहां .''<br>
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भीषण गर्जन में जहां रोर ताण्डव का डूबा जाता हो .<br>
ले चलो, जहां फट रहा व्योम, मच रहा जहां पर घमासान ,<br>
साकार ध्वंस के बीच पैठ छोडना छोड़ना मुझे है आज प्राण .''<br>
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समझ में शल्य की कुछ भी न आया ,<br>
क्षुधा जागी उसी की हाय, भू को ,<br>
कहें क्या मेदिनी मानव-प्रसू को ?<br>
रुधिर के पङक में रथ को जकड जकड़ क़र ,<br>गयी वह बैठ चक्के को पकड पकड़ क़र .<br>
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लगाया जोर अश्वों ने न थोडा ,<br>