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"मंगलाचरण / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’" के अवतरणों में अंतर
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जासौं जाति विषय-विषाद की विवाई बेगि | जासौं जाति विषय-विषाद की विवाई बेगि |
11:07, 16 जनवरी 2010 का अवतरण
जासौं जाति विषय-विषाद की विवाई बेगि
चोप-चिकनाई चित चारु गहिबौ करै ।
कहै रतनाकर कवित्त-बर-व्यंजन मैं
जासौ स्वाद सौगुनौ रुचिर रहिबौ करै॥
जासौं जोति जागति अनूप मन-मंदिर मैं
जड़ता-विषम-तम-तोम-दहिबौ करै ।
जयति जसोमति के लाड़िले गुपाल, जन
रावरी कृपा सौं सो सनेह लहिबौ करै॥