भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पहचाने नहीं जाते / उमाशंकर तिवारी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उमाशंकर तिवारी }} {{KKCatNavgeet}} <poem> ये शहर होते हुए-से गाँ…)
 
(कोई अंतर नहीं)

20:44, 16 जनवरी 2010 के समय का अवतरण

ये शहर होते हुए-से गाँव
पहचाने नहीं जाते।
लोग जो फ़ौलाद के मानिन्द थे
अब रह गए आधे,
दौड़ते-फिरते विदूषक-से
मुरेठा पाँव में बांधे,
नाम से जुड़ते हुए कुहराम
पहचाने नहीं जाते।
दाँव पर अन्धी सियासत के, हुए
गिरवी सभी चौपाल,
ख़ून के रिश्ते हुए गुमराह
चलते हैं तुरूप की चाल,
तेज़ नख वाले नए उमराव
पहचाने नहीं जाते।
अब न वे नदियाँ, न वे नावें
हवाएँ भी नहीं अनुकूल,
हर सुबह होती किनारे लाश
पानी पर उगे मस्तूल,
आँधियों के ये समर्पित भाव
पहचाने नहीं जाते।