भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बुरका / पवन करण" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पवन करण }} तुम बार-बार कहते हो और मुझे ज़रा भी यक़ीन नह...) |
|||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=पवन करण | |रचनाकार=पवन करण | ||
− | }} | + | }} |
− | + | {{KKCatKavita}} | |
− | + | <poem> | |
तुम बार-बार कहते हो | तुम बार-बार कहते हो | ||
− | |||
और मुझे ज़रा भी | और मुझे ज़रा भी | ||
− | |||
यक़ीन नहीं होता | यक़ीन नहीं होता | ||
− | |||
इसे मेरे लिए | इसे मेरे लिए | ||
− | |||
ख़ुद ख़ुदा ने बनाया है | ख़ुद ख़ुदा ने बनाया है | ||
− | |||
तुम्हारे हुक्म पर जब भी | तुम्हारे हुक्म पर जब भी | ||
− | |||
पहनती हूँ इसे | पहनती हूँ इसे | ||
− | |||
कतई स्वीकार नहीं करती | कतई स्वीकार नहीं करती | ||
− | |||
मेरी नुची हुई देह | मेरी नुची हुई देह | ||
− | |||
स्वीकार नहीं करती | स्वीकार नहीं करती | ||
− | |||
हर बार चीख-चीखकर | हर बार चीख-चीखकर | ||
− | |||
कहती है | कहती है | ||
− | |||
नहीं, इसे ख़ुदा ने नहीं | नहीं, इसे ख़ुदा ने नहीं | ||
− | |||
तुमने बनाया है | तुमने बनाया है | ||
− | |||
मेरा ख़ुदा कहलाने के लोभ में | मेरा ख़ुदा कहलाने के लोभ में | ||
− | |||
मुझे इसे तुमने पहनाया है | मुझे इसे तुमने पहनाया है | ||
+ | </poem> |
10:19, 17 जनवरी 2010 का अवतरण
तुम बार-बार कहते हो
और मुझे ज़रा भी
यक़ीन नहीं होता
इसे मेरे लिए
ख़ुद ख़ुदा ने बनाया है
तुम्हारे हुक्म पर जब भी
पहनती हूँ इसे
कतई स्वीकार नहीं करती
मेरी नुची हुई देह
स्वीकार नहीं करती
हर बार चीख-चीखकर
कहती है
नहीं, इसे ख़ुदा ने नहीं
तुमने बनाया है
मेरा ख़ुदा कहलाने के लोभ में
मुझे इसे तुमने पहनाया है