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20:44, 26 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
एक उदास, थका सा कमरा
कमरे की मेज़ पर
क़िताबों का ढेर
मार्खेज़ पर सवार
अमर्त्य सेन का न्याय का विचार
रस्किन बॉन्ड का अकेला कमरा
कुंदेरा का मज़ाक, काफ़्का के पत्र
मोटरसाइकिल पर चिली के बियाबानों में भटकते
चे ग्वेरा की डायरी
अपने देश में अपना देश खोज रही इज़ाबेला
सोफ़ी के मन में उठते सवाल
उन सवालों के जवाब
कुछ कहानियों के बिखरे ड्रॉफ़्ट
टूटी-फूटी कविताएँ
कुछ फुटकर विचार
और टूटे हैंडल वाला कॉफ़ी का एक पुराना मग
पिछले साल रानीखेत में
एक दोस्त की खींची हिमालय की कुछ तस्वीरें
एक पुराना पिक्चर-पोस्टकार्ड
पुरानी चिट्ठियों की एक फ़ाइल
जो मैंने लिखीं
जो मुझे लिखी गईं
ये सब
इस एकांत कमरे के साझेदार
भीतर पसरे सन्नाटे में
सन्नाटे जैसे मौन
मेरे साथ
बाहर पत्थरों पर गिरती
बारिश की बूंदों की
आवाज़ सुन रहे हैं