भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"निज स्वदेश ही / श्रीधर पाठक" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीधर पाठक }} {{KKCatKavita‎}} <poem> :निज स्वदेश ही एक सर्व-पर…)
 
छो ("निज स्वदेश ही / श्रीधर पाठक" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
 
(कोई अंतर नहीं)

12:07, 31 जनवरी 2010 के समय का अवतरण

निज स्वदेश ही एक सर्व-पर ब्रह्म-लोक है
निज स्वदेश ही एक सर्व-पर अमर-ओक है
निज स्वदेश विज्ञान-ज्ञान-आनंद-धाम है
निज स्वदेश ही भुवि त्रिलोक-शोभाभिराम है
सो निज स्वदेश का, सर्व विधि, प्रियवर, आराधन करो
अविरत-सेवा-सन्नद्ध हो सब विधि सुख-साधन करो