भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"एक ही वक़्त में / अरविन्द श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरविन्द श्रीवास्तव |संग्रह=अफ़सोस के लिए कुछ श…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
23:26, 2 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण
एक युवक सोच रहा है
धरती और धरती के बाशिन्दों के लिए
यह समय बेहद ख़राब है
सामने वाली छत से
एक स्त्री
छलांग लगाकर कूदना चाहती है
पड़ोस में बिलखता हुआ एक बूढ़ा
भगवान से
खुद को उठा लेने की प्रार्थना कर रहा है
एक लड़की अभी अभी अगवा हुई है
एक लड़का
अभी अभी
ट्रक से कुचला गया है
एक बुढ़िया सड़क किनारे
बुदबुदा रही है
'यह दुनिया नहीं रह गई हैं
रहने के काबिल'
ठीक ऐसे ही समय में
एक बच्चा अस्पताल में
गर्भाशय के तमाम बंधनों को तोड़ते हुए
पुरज़ोर ताक़त से
आना चाहता है
पृथ्वी पर !