"राजीव रंजन प्रसाद / परिचय" के अवतरणों में अंतर
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कविता मुझे विरासत में मिली है। शैशवकाल में ही पिता का देहांत हो गया था; वे अच्छे कवि भी थे। पिता की लेखनी ही मुझमें जीती है, ऐसा मेरा मानना है।<br /> | कविता मुझे विरासत में मिली है। शैशवकाल में ही पिता का देहांत हो गया था; वे अच्छे कवि भी थे। पिता की लेखनी ही मुझमें जीती है, ऐसा मेरा मानना है।<br /> |
22:29, 3 फ़रवरी 2010 का अवतरण
कविता मुझे विरासत में मिली है। शैशवकाल में ही पिता का देहांत हो गया था; वे अच्छे कवि भी थे। पिता की लेखनी ही मुझमें जीती है, ऐसा मेरा मानना है।
मेरा जन्म बिहार के सुल्तानगंज में २७.०५.१९७२ में हुआ, किन्तु बचपन व उनकी प्रारंभिक शिक्षा छत्तिसगढ राज्य के अति पिछडे जिले बस्तर (बचेली-दंतेवाडा) में हुई।
बस्तर की मिट्टी जहाँ मेरा बचपन गुजरा से मेरी अंतरंगता हैं और मेरी कविता में इसी मिट्टी की खुश्बू रची बसी है।
शिक्षा
मैंने "सुदूर संवेदन" में बरकतउल्लाह वि.वि से एम. टेक की उपाधि ली है साथ ही साथ भू-विज्ञान में स्नात्कोत्तर हूँ। मैंने "पर्यावरण प्रबंधन एवं सतत विकास" में पी. जी. डिप्लोमा तथा मानव संसाधन में डिप्लोमा किया है।
साहित्यिक गतिविधियाँ
विद्यालय के दिनों में एक अनियतकालीन-अव्यावसायिक पत्रिका "प्रतिध्वनि" का संपादन किया। ईप्टा से जुड कर मेरी नाटक के क्षेत्र में रुचि बढी और नाटक लेखन व निर्देशन स्नातक काल से ही मेरी अभिरुचि व जीवन का हिस्सा बने। मेरे निर्देशित चर्चित नाटकों में "किसके हाँथ लगाम", खबरदार-एक दिन", "और सुबह हो गयी", "अश्वत्थामाओं के युग में" आदि प्रमुख हैं; जो मेरी कृति भी हैं।
आकाशवाणी जगदलपुर से नियमित मेरी कवितायें प्रसारित होती रही थी तथा वे समय-समय पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हुईं।
मैंने कुछ अंतर्जाल पत्रिकाओं की संस्थापना की तथा "हिंदी को अंतर्जाल पर स्थापित करने व् साहित्य को इस माध्यम में स्थान दिलाने" के चल रहे व्यापक प्रयास का छोटा सा हिस्सा हूँ।
प्रमुख ई-पत्रिका "साहित्य शिल्पी" www.sahityashilpi.com की संस्थापना व संपादन।
प्रकाशन
सुदूर संवेदन तकनीक से संदर्भित कार्यों पर तकनीकी पुस्तकें प्रकाशित।
प्रकाशनाधीन काव्य संग्रह - टुकडे अस्तित्व के
संप्रति
वर्तमान में सरकारी उद्यम "एन.एच.पी.सी लि." में सहा. प्रबंधक (पर्यावरण) के पद पर कार्यरत।