भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कुण्डली" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{KKGlobal}}
 
यह छ्न्द दोहा और रोला छ्न्द के मिलने से बनता है। दोहे का अन्तिम चरण ही रोले का प्रथम चरण होता है अर्थात दोहा एवं रोला छ्न्द एक दूसरे में कुन्ड़लित रहेते हैं। इसीलिये इस छ्न्द का नाम कुन्ड़लिया होता है। एक अच्छा कुन्ड़लिया छ्न्द जिस शब्द से प्रारम्भ होता है उसी पर समाप्त होता है।
 
यह छ्न्द दोहा और रोला छ्न्द के मिलने से बनता है। दोहे का अन्तिम चरण ही रोले का प्रथम चरण होता है अर्थात दोहा एवं रोला छ्न्द एक दूसरे में कुन्ड़लित रहेते हैं। इसीलिये इस छ्न्द का नाम कुन्ड़लिया होता है। एक अच्छा कुन्ड़लिया छ्न्द जिस शब्द से प्रारम्भ होता है उसी पर समाप्त होता है।
  

22:42, 3 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण

यह छ्न्द दोहा और रोला छ्न्द के मिलने से बनता है। दोहे का अन्तिम चरण ही रोले का प्रथम चरण होता है अर्थात दोहा एवं रोला छ्न्द एक दूसरे में कुन्ड़लित रहेते हैं। इसीलिये इस छ्न्द का नाम कुन्ड़लिया होता है। एक अच्छा कुन्ड़लिया छ्न्द जिस शब्द से प्रारम्भ होता है उसी पर समाप्त होता है।

उदाहरण के लिये

साँई बैर न कीजिये, गुरु, पंडि़त, कवि, यार
बेटा, बनिता, पौरिया, यज्ञकरावनहार
यज्ञकरावनहार, राज मंत्री जो होई
विप्र, पड़ोसी, वैद्य, आपुको तपै रसोई
कह गिरधर कविराय युगन सों यह चलि आई
इन तेरह को तरह दिये बनि आवै साँई ॥