"मधुर-मधुर मेरे दीपक जल! / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर
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मधुर-मधुर मेरे दीपक जल! | मधुर-मधुर मेरे दीपक जल! | ||
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युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल | युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल | ||
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प्रियतम का पथ आलोकित कर! | प्रियतम का पथ आलोकित कर! | ||
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सौरभ फैला विपुल धूप बन | सौरभ फैला विपुल धूप बन | ||
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मृदुल मोम-सा घुल रे, मृदु-तन! | मृदुल मोम-सा घुल रे, मृदु-तन! | ||
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दे प्रकाश का सिन्धु अपरिमित, | दे प्रकाश का सिन्धु अपरिमित, | ||
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तेरे जीवन का अणु गल-गल | तेरे जीवन का अणु गल-गल | ||
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पुलक-पुलक मेरे दीपक जल! | पुलक-पुलक मेरे दीपक जल! | ||
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तारे शीतल कोमल नूतन | तारे शीतल कोमल नूतन | ||
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माँग रहे तुझसे ज्वाला कण; | माँग रहे तुझसे ज्वाला कण; | ||
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विश्व-शलभ सिर धुन कहता मैं | विश्व-शलभ सिर धुन कहता मैं | ||
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हाय, न जल पाया तुझमें मिल! | हाय, न जल पाया तुझमें मिल! | ||
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सिहर-सिहर मेरे दीपक जल! | सिहर-सिहर मेरे दीपक जल! | ||
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जलते नभ में देख असंख्यक | जलते नभ में देख असंख्यक | ||
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स्नेह-हीन नित कितने दीपक | स्नेह-हीन नित कितने दीपक | ||
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जलमय सागर का उर जलता; | जलमय सागर का उर जलता; | ||
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विद्युत ले घिरता है बादल! | विद्युत ले घिरता है बादल! | ||
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विहँस-विहँस मेरे दीपक जल! | विहँस-विहँस मेरे दीपक जल! | ||
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द्रुम के अंग हरित कोमलतम | द्रुम के अंग हरित कोमलतम | ||
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ज्वाला को करते हृदयंगम | ज्वाला को करते हृदयंगम | ||
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वसुधा के जड़ अन्तर में भी | वसुधा के जड़ अन्तर में भी | ||
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बन्दी है तापों की हलचल; | बन्दी है तापों की हलचल; | ||
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बिखर-बिखर मेरे दीपक जल! | बिखर-बिखर मेरे दीपक जल! | ||
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मेरे निस्वासों से द्रुततर, | मेरे निस्वासों से द्रुततर, | ||
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सुभग न तू बुझने का भय कर। | सुभग न तू बुझने का भय कर। | ||
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मैं अंचल की ओट किये हूँ! | मैं अंचल की ओट किये हूँ! | ||
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अपनी मृदु पलकों से चंचल | अपनी मृदु पलकों से चंचल | ||
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सहज-सहज मेरे दीपक जल! | सहज-सहज मेरे दीपक जल! | ||
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सीमा ही लघुता का बन्धन | सीमा ही लघुता का बन्धन | ||
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है अनादि तू मत घड़ियाँ गिन | है अनादि तू मत घड़ियाँ गिन | ||
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मैं दृग के अक्षय कोषों से- | मैं दृग के अक्षय कोषों से- | ||
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तुझमें भरती हूँ आँसू-जल! | तुझमें भरती हूँ आँसू-जल! | ||
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सहज-सहज मेरे दीपक जल! | सहज-सहज मेरे दीपक जल! | ||
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तुम असीम तेरा प्रकाश चिर | तुम असीम तेरा प्रकाश चिर | ||
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खेलेंगे नव खेल निरन्तर, | खेलेंगे नव खेल निरन्तर, | ||
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तम के अणु-अणु में विद्युत-सा | तम के अणु-अणु में विद्युत-सा | ||
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अमिट चित्र अंकित करता चल, | अमिट चित्र अंकित करता चल, | ||
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सरल-सरल मेरे दीपक जल! | सरल-सरल मेरे दीपक जल! | ||
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तू जल-जल जितना होता क्षय; | तू जल-जल जितना होता क्षय; | ||
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यह समीप आता छलनामय; | यह समीप आता छलनामय; | ||
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मधुर मिलन में मिट जाना तू | मधुर मिलन में मिट जाना तू | ||
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उसकी उज्जवल स्मित में घुल खिल! | उसकी उज्जवल स्मित में घुल खिल! | ||
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मदिर-मदिर मेरे दीपक जल! | मदिर-मदिर मेरे दीपक जल! | ||
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प्रियतम का पथ आलोकित कर! | प्रियतम का पथ आलोकित कर! | ||
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14:34, 4 फ़रवरी 2010 का अवतरण
मधुर-मधुर मेरे दीपक जल!
युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल
प्रियतम का पथ आलोकित कर!
सौरभ फैला विपुल धूप बन
मृदुल मोम-सा घुल रे, मृदु-तन!
दे प्रकाश का सिन्धु अपरिमित,
तेरे जीवन का अणु गल-गल
पुलक-पुलक मेरे दीपक जल!
तारे शीतल कोमल नूतन
माँग रहे तुझसे ज्वाला कण;
विश्व-शलभ सिर धुन कहता मैं
हाय, न जल पाया तुझमें मिल!
सिहर-सिहर मेरे दीपक जल!
जलते नभ में देख असंख्यक
स्नेह-हीन नित कितने दीपक
जलमय सागर का उर जलता;
विद्युत ले घिरता है बादल!
विहँस-विहँस मेरे दीपक जल!
द्रुम के अंग हरित कोमलतम
ज्वाला को करते हृदयंगम
वसुधा के जड़ अन्तर में भी
बन्दी है तापों की हलचल;
बिखर-बिखर मेरे दीपक जल!
मेरे निस्वासों से द्रुततर,
सुभग न तू बुझने का भय कर।
मैं अंचल की ओट किये हूँ!
अपनी मृदु पलकों से चंचल
सहज-सहज मेरे दीपक जल!
सीमा ही लघुता का बन्धन
है अनादि तू मत घड़ियाँ गिन
मैं दृग के अक्षय कोषों से-
तुझमें भरती हूँ आँसू-जल!
सहज-सहज मेरे दीपक जल!
तुम असीम तेरा प्रकाश चिर
खेलेंगे नव खेल निरन्तर,
तम के अणु-अणु में विद्युत-सा
अमिट चित्र अंकित करता चल,
सरल-सरल मेरे दीपक जल!
तू जल-जल जितना होता क्षय;
यह समीप आता छलनामय;
मधुर मिलन में मिट जाना तू
उसकी उज्जवल स्मित में घुल खिल!
मदिर-मदिर मेरे दीपक जल!
प्रियतम का पथ आलोकित कर!