भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"शब्द-शब्द अनमोल परिंदे / रवीन्द्र प्रभात" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
{{KKCatGhazal}} | {{KKCatGhazal}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | शब्द-शब्द अनमोल परिंदे | + | शब्द-शब्द अनमोल परिंदे, |
− | + | सुन्दर बोली बोल परिंदे ! | |
− | सुन्दर बोली बोल परिंदे | + | |
जीवन -जीवन भूलभुलैया - | जीवन -जीवन भूलभुलैया - | ||
− | + | दुनिया गोलम- गोल परिंदे ! | |
− | दुनिया गोलम- गोल परिंदे | + | |
छोटा मुँह मत बात बड़ी कर - | छोटा मुँह मत बात बड़ी कर - | ||
− | + | खुल जायेगी पोल परिंदे ! | |
− | खुल जायेगी पोल परिंदे | + | |
शीशे के घर में रहकर ना - | शीशे के घर में रहकर ना - | ||
− | + | पत्थर -पत्थर तोल परिंदे ! | |
− | पत्थर -पत्थर तोल परिंदे | + | |
बन्दर के हाथों में मत दे - | बन्दर के हाथों में मत दे - | ||
− | + | झाल -मजीरा -ढोल परिंदे ! | |
− | झाल -मजीरा -ढोल परिंदे | + | |
कुछ मन की मर्यादा रख ले - | कुछ मन की मर्यादा रख ले - | ||
− | + | आंखों को मत घोल परिंदे ! | |
− | आंखों को मत घोल परिंदे | + | |
कुछ "प्रभात " के जैसा रच दे - | कुछ "प्रभात " के जैसा रच दे - | ||
− | + | अंतर -पट अब खोल परिंदे ! | |
− | अंतर -पट अब खोल परिंदे | + | |
<poem> | <poem> |
17:44, 5 फ़रवरी 2010 का अवतरण
शब्द-शब्द अनमोल परिंदे,
सुन्दर बोली बोल परिंदे !
जीवन -जीवन भूलभुलैया -
दुनिया गोलम- गोल परिंदे !
छोटा मुँह मत बात बड़ी कर -
खुल जायेगी पोल परिंदे !
शीशे के घर में रहकर ना -
पत्थर -पत्थर तोल परिंदे !
बन्दर के हाथों में मत दे -
झाल -मजीरा -ढोल परिंदे !
कुछ मन की मर्यादा रख ले -
आंखों को मत घोल परिंदे !
कुछ "प्रभात " के जैसा रच दे -
अंतर -पट अब खोल परिंदे !