भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"नासमझ यह मोहन ठकुरी / मोहन ठकुरी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
<Poem> | <Poem> | ||
उसके अपने कभी अपने नही हुए | उसके अपने कभी अपने नही हुए | ||
− | |||
अधूरे सपनों को गले लगाकर | अधूरे सपनों को गले लगाकर | ||
− | |||
बैठा यह मोहन ठकुरी | बैठा यह मोहन ठकुरी | ||
− | |||
गमले के कैकटस जैसा | गमले के कैकटस जैसा | ||
− | |||
न फूल सकता है, न फैल सकता है! | न फूल सकता है, न फैल सकता है! | ||
− | |||
उसकी हँसी कृत्रिम है | उसकी हँसी कृत्रिम है | ||
− | |||
अव्यक्त व्यथा-वेदनाओं में लिपटकर | अव्यक्त व्यथा-वेदनाओं में लिपटकर | ||
− | |||
बैठा यह मोहन ठकुरी | बैठा यह मोहन ठकुरी | ||
− | |||
किसी के मन में माया बनकर रह नही सकता | किसी के मन में माया बनकर रह नही सकता | ||
− | |||
किसी की आँखों में आँसू बनकर छलक नही सकता ! | किसी की आँखों में आँसू बनकर छलक नही सकता ! | ||
− | + | '''इस कविता का अनुवाद स्वयं कवि ने किया है। | |
<Poem> | <Poem> |
21:11, 6 फ़रवरी 2010 का अवतरण
उसके अपने कभी अपने नही हुए
अधूरे सपनों को गले लगाकर
बैठा यह मोहन ठकुरी
गमले के कैकटस जैसा
न फूल सकता है, न फैल सकता है!
उसकी हँसी कृत्रिम है
अव्यक्त व्यथा-वेदनाओं में लिपटकर
बैठा यह मोहन ठकुरी
किसी के मन में माया बनकर रह नही सकता
किसी की आँखों में आँसू बनकर छलक नही सकता !
इस कविता का अनुवाद स्वयं कवि ने किया है।