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"कथावाचक / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर

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'''कथा वाचक'''
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चाह नहीं कुछ<br />
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कहना सब को सब को लाना<br />
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कहना सब को सब को लाना
बच्चे बूढ़े नारी सभी को<br />
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          भी थोड़ा कर दूँगा मैं<br />
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हाँ हाँ बेटे...शंख बजेगा, आना
 
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कहीं अभी तक जम नहीं सका हूँ<br />
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नहीं रही पहिले जैसी उत्सुकता मन में
भक्तों के भी<br />
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भक्तों के भी
बदला समय भाव भी बदले<br />
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उत्तर कांड समाप्त<br />
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अचानक होगा कहीं<br />
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अचानक होगा कहीं
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कभी अचानक स्वर अँटकेगा कथा सुनाते<br />
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कभी अचानक स्वर अँटकेगा कथा सुनाते
कहीं बीच से टूटेगी जीवन चौपाई<br />
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कहीं बीच से टूटेगी जीवन चौपाई
 
अर्थ शेष रह जाएगा
 
अर्थ शेष रह जाएगा
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23:21, 6 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण

हो जो कोई भरे हुँकारी
फिर तो कथा सुनाता जाऊँ
रात-रात भर
कभी न सोऊँ

चाह नहीं कुछ
गाँव नगर में घूम-घूम कर
कथा सुनाता जाऊँ
कहीं पेड़ के नीचे या ओटे पर
विद्यालय में
जहाँ कभी भी जुट जाएँ दस लोग
वहीं पर चित्रकूट हो-
कहना सब को सब को लाना
बच्चे बूढ़े नारी सभी को
बीच-बीच में अर्थ

भी थोड़ा कर दूँगा मैं
हाँ हाँ बेटे...शंख बजेगा, आना

हारमोनियम लिए घूमता देस-देस मैं
कहीं अभी तक जम नहीं सका हूँ
नहीं रही पहिले जैसी उत्सुकता मन में
भक्तों के भी
बदला समय भाव भी बदले
एक जून भोजन भी भारी
भक्तों के घर
उत्तर कांड समाप्त
अचानक होगा कहीं
किसी अज्ञात गाँव में
कभी अचानक स्वर अँटकेगा कथा सुनाते
कहीं बीच से टूटेगी जीवन चौपाई
अर्थ शेष रह जाएगा