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21:38, 9 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण
जब होती हूँ
पंख
उड़ जाते हो थामकर मुझे
नीले विस्तार में
जब
होती हूँ ख़्वाब
भर लेते हो अपनी आँखों में
जब
होती हूँ बूँद
सागर बन समेट लेते हो
अपने आग़ोश में
जब
होती हूँ सुबह
भर देते हो हुलसते फूल
मेरी हथेलियों में
पर जब होती हूँ मैं
अपनी पहचान
तोड़ लेते हो
मुझसे
पहचान के सारे नाते...।