"तुम परेशां न हो / कैफ़ी आज़मी" के अवतरणों में अंतर
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काश तुम को कभी तन्हाई का एहसास न हो<br> | काश तुम को कभी तन्हाई का एहसास न हो<br> | ||
काश ऐसा न हो ग़ैर-ए-राह-ए-दुनिया तुम को<br> | काश ऐसा न हो ग़ैर-ए-राह-ए-दुनिया तुम को<br> | ||
− | + | और इस तरह कि जिस तरह कोई पास न हो<br><br> | |
आज की रात जो मेरी तरह तन्हा है<br> | आज की रात जो मेरी तरह तन्हा है<br> | ||
− | मैं | + | मैं किसी तरह गुज़ारूंगा चला जाऊंगा<br> |
− | तुम परेशां न हो बाब-ए-करम वा न करो<br> | + | तुम परेशां न हो बाब-ए-करम-वा न करो<br> |
− | + | और कुछ देर पुकारूंगा चला जाऊंगा<br><br> |
09:27, 14 फ़रवरी 2010 का अवतरण
तुम परेशां न हो बाब-ए-करम-वा न करो
और कुछ देर पुकारूंगा चला जाऊंगा
इसी कूचे में जहां चांद उगा करते थे
शब-ए-तारीक गुज़ारूंगा चला जाऊंगा
रास्ता भूल गया या यहां मंज़िल है मेरी
कोई लाया है या ख़ुद आया हूं मालूम नहीं
कहते हैं कि नज़रें भी हसीं होती हैं
मैं भी कुछ लाया हूं क्या लाया मालूम नहीं
यूं तो जो कुछ था मेरे पास मैं सब कुछ बेच आया
कहीं इनाम मिला और कहीं क़ीमत भी नहीं
कुछ तुम्हारे लिए आंखों में छुपा रक्खा है
देख लो और न देखो तो शिकायत भी नहीं
फिर भी इक राह में सौ तरह के मोड़ आते हैं
काश तुम को कभी तन्हाई का एहसास न हो
काश ऐसा न हो ग़ैर-ए-राह-ए-दुनिया तुम को
और इस तरह कि जिस तरह कोई पास न हो
आज की रात जो मेरी तरह तन्हा है
मैं किसी तरह गुज़ारूंगा चला जाऊंगा
तुम परेशां न हो बाब-ए-करम-वा न करो
और कुछ देर पुकारूंगा चला जाऊंगा