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"माँ की आँखें / श्रीकांत वर्मा" के अवतरणों में अंतर

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20:06, 14 फ़रवरी 2010 का अवतरण

मेरी माँ की डबडब आँखें
मुझे देखती हैं यों
जलती फ़सलें, कटती शाखें।
मेरी माँ की किसान आँखें!

मेरी माँ की खोई आँखें
मुझे देखती हैं यों
शाम गिरे नगरों को
फैलाकर पाँखें।
मेरी माँ की उदास आँखें।