भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"माँ की आँखें / श्रीकांत वर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीकांत वर्मा |संग्रह=दिनारम्भ / श्रीकांत वर्…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
20:06, 14 फ़रवरी 2010 का अवतरण
मेरी माँ की डबडब आँखें
मुझे देखती हैं यों
जलती फ़सलें, कटती शाखें।
मेरी माँ की किसान आँखें!
मेरी माँ की खोई आँखें
मुझे देखती हैं यों
शाम गिरे नगरों को
फैलाकर पाँखें।
मेरी माँ की उदास आँखें।