भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हर एक चेहरे को ज़ख़्मों का आईना न कहो / राहत इन्दौरी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) |
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
ये ज़िन्दगी तो है रहमत इसे सज़ा न कहो| | ये ज़िन्दगी तो है रहमत इसे सज़ा न कहो| | ||
− | न जाने कौन सी | + | न जाने कौन सी मज़बूरीओं का क़ैदी हो, |
वो साथ छोड़ गया है तो बेवफ़ा न कहो| | वो साथ छोड़ गया है तो बेवफ़ा न कहो| | ||
पंक्ति 13: | पंक्ति 13: | ||
ये इत्तेफ़ाक़ था तुम इस को हादसा न कहो| | ये इत्तेफ़ाक़ था तुम इस को हादसा न कहो| | ||
− | ये और बात | + | ये और बात कि दुश्मन हुआ है आज मगर, |
वो मेरा दोस्त था कल तक उसे बुरा न कहो| | वो मेरा दोस्त था कल तक उसे बुरा न कहो| | ||
10:45, 15 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण
हर एक चेहरे को ज़ख़्मों का आईना न कहो|
ये ज़िन्दगी तो है रहमत इसे सज़ा न कहो|
न जाने कौन सी मज़बूरीओं का क़ैदी हो,
वो साथ छोड़ गया है तो बेवफ़ा न कहो|
तमाम शहर ने नेज़ों पे क्यूँ उछाला मुझे,
ये इत्तेफ़ाक़ था तुम इस को हादसा न कहो|
ये और बात कि दुश्मन हुआ है आज मगर,
वो मेरा दोस्त था कल तक उसे बुरा न कहो|
हमारे ऐब हमें उँगलियों पे गिनवाओ,
हमारी पीठ के पीछे हमें बुरा न कहो|
मैं वक़ियात की ज़न्जीर का नहीं क़ायल,
मुझे भी अपने गुनाहों का सिलसिला न कहो|
ये शहर वो है जहाँ राक्षस भी है "राहत",
हर एक तराशे हुये बुत को देवता न कहो|