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"शक के पहरे हल्के पड़े / कात्यायनी" के अवतरणों में अंतर

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जीने की ज़रूरी ख़ुराक।
 
जीने की ज़रूरी ख़ुराक।
  
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'''रचनाकाल : अप्रैल 1996'''
 
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00:44, 16 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण

शक के पहरे हल्के पड़े
और वफ़ादार हो गई स्त्री
प्यार का स्वाद भूलते हुए
प्यार नमक नहीं हो पाया था
उसके लिए
न लड़ना ही
जीने की ज़रूरी ख़ुराक।

रचनाकाल : अप्रैल 1996