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चाँद की रोशनी में
झील की सतह पर उछलती है
रुपहली मछली
-शापित जलकन्या शायद कोई।
ख़ुशी क्षणजीवी हो इतनी भी,
यों काफ़ी कुछ दे जाती है।
यादों में कहीं रह जाती है।
रचनाकाल : जनवरी-अप्रैल, 2003