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"रुलाकर चल दिए इक दिन / शैलेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
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मुसाफ़िर कोई लुटा जा रहा है | मुसाफ़िर कोई लुटा जा रहा है |
07:55, 17 फ़रवरी 2010 का अवतरण
गीतकार : मजरुह सुल्तानपुरी
मिला दिल, मिल के टूटा जा रहा है
नसीबा बन के फूटा जा रहा है..
दवा-ए-दर्द-ए-दिल मिलनी थी जिससे
वही अब हम से रूठा जा रहा है
अंधेरा हर तरफ़, तूफ़ान भारी
और उनका हाथ छूटा जा रहा है
दुहाई अहल-ए-मंज़िल की, दुहाई
मुसाफ़िर कोई लुटा जा रहा है