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समयातीत पूर्ण-2 / कुमार सुरेश
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16:23, 18 फ़रवरी 2010
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<poem>
है
हे गोविन्द
गोपियाँ मतवाली थीं तुम्हारी बांसुरी की
तन
तान
पर
चितवन और तुम्हारी छवि पर
दौड़ जा पहुचतीं थीं
हे पूर्ण पुरुष
हम जो
प्रतिछ्णन
प्रतिछ्ण
पराजित हैं काम से
से सच कहो
कौन सा बशीकरण मंत्र था तुम्हारे पास
Kumar suresh
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