भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"होलिका पंचक / प्रतापनारायण मिश्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन्द्र कुमार जैन |संग्रह=कहीं और / वीरेन्द्र…)
(कोई अंतर नहीं)

03:30, 22 फ़रवरी 2010 का अवतरण

भारत सुत खेलत होरी ।।
प्रथम अविद्या अगिनी बारिकै, सर्वसु फूँकि दियो री ।
आलस बस पुरिखन के जस की, चूरि उड़ाइ बहोरी ।
रंग सब भंग कियो री ।।
छकै परस्पर बैर बारुणी, सबको ज्ञान गयो री ।
घरन-घरन भाइन-भाइन में, जूता उछरि रह्यो री ।
बकैं सब आपस में फोरी ।।
बड़े-बड़े बीरन के वंशज, बनि बैठे सब गोरी ।
नाचि रिझावत परदेसिन को, लाज नहीं तनको री ।
जु ले लहँगौ कौ छोरी ।।
निज करतूत भयो मुख कारो, ताको सोच तज्यो री ।
देखो यह परताप कुमति को, दुख में सुख समझ्यो री ।
निलज सब देश भयो री ।।