भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"धन्य सुरेन्द्र / प्रतापनारायण मिश्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रतापनारायण मिश्र |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> धनि-धनि …) |
(कोई अंतर नहीं)
|
03:40, 22 फ़रवरी 2010 का अवतरण
धनि-धनि भारत आरत के तुम एक मात्र हितकारी ।
धन्य सुरेन्द्र सकल गौरव के अद्वितीय अधिकारी ।।
कियो महाश्रम मातृभूमि हित निज तन मन धन वारी ।
सहि न सके स्वधर्म निन्दा बस घोर विपति सिर धारी ।।
उन्नति उन्नति बकत रहत निज मुख से बहुत लबारी ।
करि दिखरावन हार आजु एक तुमही परत निहारी ।।
दुख दै कै अपमान तुम्हारो कियो चहत अविचारी ।
यह नहिं जानत शूर अंग कटि शोभ बढ़ावत भारी ।।
धनि तुम धनि तुम कहँ जिन जायो सो पितु सो महतारी ।
परम धन्य तव पद प्रताप से भई भरत भुवि सारी ।।