भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दिल मेरा सोज़े-निहां से बेमहाबा जल गया / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो ()
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
}}
 
}}
 
[[Category:ग़ज़ल]]
 
[[Category:ग़ज़ल]]
 +
<poem>दिल मेरा सोज़े-निहां<ref>आंतरिक जलन</ref> से बेमहाबा<ref>एकदम</ref> जल गया
 +
आतिशे-ख़ामोश<ref>मूक आग</ref> के मानिन्द गोया जल गया <ref></ref>
  
दिल मेरा सोज़-ए-निहाँ से बेमुहाबा जल गया <br>
+
दिल में ज़ौक़े<ref>चाह</ref>-वस्लों<ref>मिलन</ref>-यादे-यार तक बाक़ी नहीं
आतिश--ख़ामोश के मानिन्द गोया जल गया <br><br>
+
आग इस घर को लगी ऐसी कि जो था जल गया  
  
दिल में ज़ौक़-ए-वस्ल-ओ-याद-ए-यार तक बाक़ी नहीं <br>
+
मैं अ़दम<ref>अस्तित्वहीनता</ref> से भी परे हूँ वर्ना ग़ाफ़िल बारहा
आग इस घर में लगी ऐसी कि जो था जल गया <br><br>
+
मेरी आहे-आतशीं<ref>जलती हुई आह</ref> से बोले-अ़न्क़ा<ref>अ़नक़ा नामक पक्षी का पंख</ref> जल गया
  
मैं अदम से भी परे हूँ वर्ना ग़ाफ़िल! बारहा <br>
+
अर्ज़ कीजे जौहरे-अन्देशा<ref>चिन्तन-तत्व</ref> की गर्मी कहाँ
मेरी आह-ए-आतशीं से बाल-ए-अन्क़ा जल गया <br><br>
+
कुछ ख़याल आया था वहशत का कि सेहरा जल गया  
  
अर्ज़ कीजे जौहर-ए-अन्देशा की गर्मी कहाँ <br>
+
दिल नहीं, तुझ को दिखाता वरना दाग़ों की बहार
कुछ ख़याल आया था वहशत का कि सेहरा जल गया <br><br>
+
इस चिराग़ां का करूँ क्या, कारफ़र्मा<ref>कार्यकर्ता</ref> जल गया
  
दिल नहीं, तुझ को दिखाता वरना दाग़ों की बहार <br>
+
मैं हूँ और अफ़सुर्दगी<ref>उदासी</ref> की आरज़ू "ग़ालिब" के दिल  
इस चराग़ाँ का, करूँ क्या, कारफ़र्मा जल गया <br><br>
+
देखकर तर्ज़े-तपाके<ref>व्यवहार का ढंग</ref>-अहले-दुनिया जल गया </poem>
 
+
{{KKMeaning}}
मैं हूँ और अफ़्सुर्दगी की आरज़ू "ग़ालिब" के दिल <br>
+
देख कर तर्ज़-ए-तपाक-ए-अहले-दुनिया जल गया <br><br>
+

05:25, 27 फ़रवरी 2010 का अवतरण

दिल मेरा सोज़े-निहां<ref>आंतरिक जलन</ref> से बेमहाबा<ref>एकदम</ref> जल गया
आतिशे-ख़ामोश<ref>मूक आग</ref> के मानिन्द गोया जल गया <ref></ref>

दिल में ज़ौक़े<ref>चाह</ref>-वस्लों<ref>मिलन</ref>-यादे-यार तक बाक़ी नहीं
आग इस घर को लगी ऐसी कि जो था जल गया

मैं अ़दम<ref>अस्तित्वहीनता</ref> से भी परे हूँ वर्ना ग़ाफ़िल बारहा
मेरी आहे-आतशीं<ref>जलती हुई आह</ref> से बोले-अ़न्क़ा<ref>अ़नक़ा नामक पक्षी का पंख</ref> जल गया

अर्ज़ कीजे जौहरे-अन्देशा<ref>चिन्तन-तत्व</ref> की गर्मी कहाँ
कुछ ख़याल आया था वहशत का कि सेहरा जल गया

दिल नहीं, तुझ को दिखाता वरना दाग़ों की बहार
इस चिराग़ां का करूँ क्या, कारफ़र्मा<ref>कार्यकर्ता</ref> जल गया

मैं हूँ और अफ़सुर्दगी<ref>उदासी</ref> की आरज़ू "ग़ालिब" के दिल
देखकर तर्ज़े-तपाके<ref>व्यवहार का ढंग</ref>-अहले-दुनिया जल गया

शब्दार्थ
<references/>