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"दर्पण को देखा तूने / इंदीवर" के अवतरणों में अंतर
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| − | + | हसरत ही रही मेरे दिल में  | |
| − | + | बनूँ तेरे गले का हार  | |
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08:35, 1 मार्च 2010 का अवतरण
दर्पण को देखा तूने 
जब जब किया श्रृंगार
फूलों को देखा तूने 
जब जब आई बहार
एक बदनसीब हूँ मैं 
मुझे नहीं देखा एक बार
सूरज की पहली किरनों को
देखा तूने अलसाते हुए
रातों में तारों को देखा
सपनों में खो जाते हुए
यूँ किसी न किसी बहाने
तूने देखा सब संसार
काजल की क़िस्मत क्या कहिये
नैनों में तूने बसाया है
आँचल की क़िस्मत क्या कहिये
तूने अंग लगाया है
हसरत ही रही मेरे दिल में
बनूँ तेरे गले का हार
	
	