"मध्मवर्गीय पत्नी से / कुँअर बेचैन" के अवतरणों में अंतर
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18:44, 17 जनवरी 2008 का अवतरण
कल समय की व्यस्तताओं से निकालूँगा समय कुछ
फिर भरुँगा खुद तुम्हारी माँग में सिन्दूर
मुझको माफ़ करना
आज तो इस वक्त काफी देर ऑफिस को हुई है
हाँ जरा सुनना वो मेरी पेंट है न
वो फटी है जो अकेले पाँयचों पर
तुम जरा उसमें लगाकर चन्द टाँके
शर्ट के टूटे बटन भी टाँक देना
इस तरह से, जो नई हर कोई आँके
कल थमे वातावरण से, मैं निकालूँगा प्रलय कुछ
ले चलूँगा फिर तुम्हें इस भीड़ से भी दूर
मुझको माफ करना
आज तो इस वक्त काफी देर, ग्यारह पर सुई है
क्या कहा, है आज पप्पू का जन्मदिन
तुम सुनो, ये बात पप्पू से न कहना
और दिन भर तुम उसी के पास रहना
यदि करे तुमको परेशां, मारना मत
और हाँ, तुम भी कहीं मन हारना मत
कल पराजय के जलधि से, मैं निकालूँगा विजय कुछ
फिर मनायेंगे जन्मदिन की खुशी भरपूर
मुझको माफ करना
आज तो ये जेब भी मेरी फटेपन ने छुई है
-- यह रचना Dr.Bhawna Kunwar द्वारा कविता कोश में डाली गयी है।