भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कविता बनाम दूसरे काम / कुमार सुरेश" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: कविता बनाम दूसरे काम <poem>तीसरे और चौथे पहर का संधिकाल सफारी के नी…)
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
[[कविता बनाम दूसरे काम]]
+
{{KKGlobal}}
<poem>तीसरे और चौथे पहर का संधिकाल  
+
{{KKRachna
सफारी के नीचे स्लीपर  
+
|रचनाकार=कुमार सुरेश
 +
}}
 +
{{KKCatKavita‎}}
 +
<poem>
 +
तीसरे और चौथे पहर का संधिकाल  
 +
सफ़ारी के नीचे स्लीपर  
 
काँधे पर झोला  
 
काँधे पर झोला  
 
दद्दा अजीब लगते हैं  
 
दद्दा अजीब लगते हैं  
पंक्ति 14: पंक्ति 19:
 
जो मिले पाठकों या संपादकों से  
 
जो मिले पाठकों या संपादकों से  
  
कविता कर्म की चर्चा का बना उपक्रम  
+
कविता-कर्म की चर्चा का बना उपक्रम  
 
बताने लगे, किस पत्रिका में कौन हैं संपादक  
 
बताने लगे, किस पत्रिका में कौन हैं संपादक  
 
किस-किस से उनका परिचय  
 
किस-किस से उनका परिचय  
पंक्ति 23: पंक्ति 28:
  
 
सीनियर कवि के नाते देने लगे सलाह  
 
सीनियर कवि के नाते देने लगे सलाह  
उस पत्रिका को भेजो वहां फलां है  
+
उस पत्रिका को भेजो वहाँ फलाँ है  
अलां को फ़ोन करो, बात बन जाती है  
+
अलाँ को फ़ोन करो, बात बन जाती है  
 
पूरे वार्तालाप में नहीं बताते गुर  
 
पूरे वार्तालाप में नहीं बताते गुर  
 
अच्छी कविता कैसे लिखी जाए  
 
अच्छी कविता कैसे लिखी जाए  
  
 
कहा मैंने  
 
कहा मैंने  
जिंदगी वैसे ही नीचता से लथपथ है  
+
ज़िंदगी वैसे ही नीचता से लथपथ है  
 
न जाने क्या-क्या समझौते और पतन  
 
न जाने क्या-क्या समझौते और पतन  
 
कविता चुनी ही इसलिए है हमने  
 
कविता चुनी ही इसलिए है हमने  
कि इसमें झलक है स्वतंत्रता कि
+
कि इसमें झलक है स्वतंत्रता की
 
जहाँ समझौता और बंधन नहीं  
 
जहाँ समझौता और बंधन नहीं  
 
कविता कर्म करते समय  
 
कविता कर्म करते समय  
पंक्ति 39: पंक्ति 44:
 
कविता को भी यदि  
 
कविता को भी यदि  
 
जुगाड़ और अवसर के कीचड से लपेटना है  
 
जुगाड़ और अवसर के कीचड से लपेटना है  
तो बिना कविता के ही जिंदगी खूब नरक है  
+
तो बिना कविता के ही ज़िंदगी ख़ूब नरक है  
कुछ चीजें पवित्र हैं जैसे  
+
कुछ चीज़ें पवित्र हैं जैसे  
 
हवा में नाचता खिला फूल  
 
हवा में नाचता खिला फूल  
 
छोटे बच्चे की आँखें  
 
छोटे बच्चे की आँखें  
  
दोस्तों की बेतकल्लुफ हंसी
+
दोस्तों की बेतकल्लुफ़ हँसी
 
और कविता  
 
और कविता  
इन चीजों को सहेजना है ऐसे  
+
इन चीज़ों को सहेजना है ऐसे  
 
जैसे बच्चे सहेजकर रखते हैं  
 
जैसे बच्चे सहेजकर रखते हैं  
 
विद्या की पत्ती किताब के बीच  
 
विद्या की पत्ती किताब के बीच  
हम सहेजते हैं डबडबायी आँख  
+
हम सहेजते हैं डबडबाई आँख  
 
रुमाल की कोर के बीच  
 
रुमाल की कोर के बीच  
  
पंक्ति 59: पंक्ति 64:
 
मोहल्ला गणेश उत्सव समिति का बन जाना अध्यक्ष  
 
मोहल्ला गणेश उत्सव समिति का बन जाना अध्यक्ष  
 
या फिर आप ही सोचें वह कुछ  
 
या फिर आप ही सोचें वह कुछ  
कविता को छोड़कर.
+
कविता को छोड़कर।
 
</poem>
 
</poem>

02:17, 3 मार्च 2010 का अवतरण

तीसरे और चौथे पहर का संधिकाल
सफ़ारी के नीचे स्लीपर
काँधे पर झोला
दद्दा अजीब लगते हैं
सुपरिचित-नाम कवि !

परिचय होते ही
चट से उतारा झोला
कोई पत्रिका निकाल दिखाने लगे
उनकी कविता छपी है
दूसरी फिर तीसरी पत्रिका निकाली
कुछ पोस्टकार्ड भी
जो मिले पाठकों या संपादकों से

कविता-कर्म की चर्चा का बना उपक्रम
बताने लगे, किस पत्रिका में कौन हैं संपादक
किस-किस से उनका परिचय
कौन जानता उन्हें नाम से
कौन अच्छा है
कौन इतना घमंडी
कि उनके पत्रों का देता नहीं जवाब

सीनियर कवि के नाते देने लगे सलाह
उस पत्रिका को भेजो वहाँ फलाँ है
अलाँ को फ़ोन करो, बात बन जाती है
पूरे वार्तालाप में नहीं बताते गुर
अच्छी कविता कैसे लिखी जाए

कहा मैंने
ज़िंदगी वैसे ही नीचता से लथपथ है
न जाने क्या-क्या समझौते और पतन
कविता चुनी ही इसलिए है हमने
कि इसमें झलक है स्वतंत्रता की
जहाँ समझौता और बंधन नहीं
कविता कर्म करते समय
स्वतंत्र-चेता मनुष्य होता है कवि

कविता को भी यदि
जुगाड़ और अवसर के कीचड से लपेटना है
तो बिना कविता के ही ज़िंदगी ख़ूब नरक है
कुछ चीज़ें पवित्र हैं जैसे
हवा में नाचता खिला फूल
छोटे बच्चे की आँखें

दोस्तों की बेतकल्लुफ़ हँसी
और कविता
इन चीज़ों को सहेजना है ऐसे
जैसे बच्चे सहेजकर रखते हैं
विद्या की पत्ती किताब के बीच
हम सहेजते हैं डबडबाई आँख
रुमाल की कोर के बीच

सारी पशुता के बरक्स
कविता इंसान होने का सुकून है
इसको बेचने से अच्छा है
कुछ और किया जाए
जैसे चुनाव लड़ना या मंदिर कमेटी का चंदा वसूलना
मोहल्ला गणेश उत्सव समिति का बन जाना अध्यक्ष
या फिर आप ही सोचें वह कुछ
कविता को छोड़कर।