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"फूल / नीलेश रघुवंशी" के अवतरणों में अंतर

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15:48, 5 मार्च 2010 का अवतरण

ओ आसमान!
गिरे अब कोई फूल
उठाना तुम
बिखेर देना उसे
देखूँगी धरती को हँसते साथ उसके।

बहुत है एक फूल मेरे लिए
सींचा उसे
जो देने लगा ख़ुशबू
जाने कहाँ से आ गया माली।

टहनियो, उदास मत हो
वसंत अगर तुम्हें छोड़कर चला गया अछूता
मिलेगा तुम्हें नया जीवन
मिलती है जैसे बच्चे को गेंद।

मुझे दुख नहीं
पूरा का पूरा बगीचा चला गया
दूसरे आँगन
अर्थ का भरा जीवन है उसके पास
गुम हो जाएँगे जब सारे रास्ते
दिखलाएगा यही राह
यह फूल है दूसरे के आँगन का
हवा में इस के बिखरी है मेरी गंध।